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( ४८ ) का उल्लेख तो किया है, परन्तु ग्रन्थ के रचनाकाल का कोई निर्देश नहीं किया है। इनका काल वि. सं. की १३ वीं शताब्दी के द्वितीय चरण के आस-पास माना जा सकता है । कल्पसूत्रटिप्पनक की वि. सं १३८४ की एक प्रति पाटन के ग्रन्थ भंडार में संग्रहीत है। इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार द्वारा उल्लिखित अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार है
शीलभद्रसूरि धर्मघोषसूरि यशोभद्रसूरि देवसेनसूरि पृथ्वीचन्द्रसूरि ( कल्पसूत्रटिप्पनक के कर्ता)
श्रीधर्मघोषसूरिर्बोधितशाकंभरीभूपः ॥ चारित्रांभोधिशशी त्रिवगंपरिहारजनित बुधहर्षः । दर्शितविधिः शमनिधिः सिद्धांतमहोदधिप्रवरः ॥ ३ ॥ बभूव श्रीयशोभद्रसूरिस्तच्छिष्यशेखरः ।। तत्पादपद्ममधुपोभूत् श्रीदेवसेनगणिः ।। ४ ।। टिप्पनकं पर्युषणाकल्पस्यालिखदवेक्ष्य शास्त्राणि: । तच्छिष्य (पद्म)कमलमधुपः श्रीपृथ्वीचंद्रसूरिरिदं ।। ५ ।। इह यद्यपि न स्वधिया विहितं किंचित् तथापि बुधवगैः । संशोध्यमधिकमूनं यद् भणितं स्वपरबोधाय ।। ६ ॥
श्रीपयुषणाकल्पटिप्पनकं । संवत् १३८४ वर्षे भाद्रवा शुदि १ शनी अद्येह स्तंभतीर्थे वेलाकले श्रीमदंचलगच्छे श्रीकल्पपुस्तिका तिलकप्रभागणिनीयोग्या महं. अजयसिंहेन लिखिता । मंगलं महाश्री: । देहि विद्यां परमेश्वरि ! शिवमस्तु सर्वजगतः ।
बलाल, चिमनलाल डाह्याभाई, पूर्वोक्त, पृ० ३७
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