Book Title: Sramana 1990 01
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ ( ५४ ) पुस्तक प्रशस्तियां १-कालकाचार्यकथा' इस रचना की वि० सं० १३४४ की एक 'प्रति पाटन के जैन ग्रन्थ भंडार में सुरक्षित है। इसे धर्मघोषगच्छीय आचार्य अमरप्रभसूरि के उपदेश से सोमसिंह नामक श्रावक ने लिपिबद्ध कराया था। इसकी प्रशस्ति में अमरप्रभसूरि की गुरु-परम्परा का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है शीलभद्रसूरि धर्मघोषसूरि आनन्द्रसूरि अमरप्रभसूरि (वि० सं० १३४४ में इनके उपदेश से कल्पसूत्र की प्रतिलिपि तैयार की गयी) १. ऊकेशवंशे भुवनाभिरामे छायासमाश्वासितसत्वसार्था । शोराणकीयास्ति विशालशाखा साकारपत्रावलीराजनामा । तत्राभवद् भवभयच्छिदुराहदंध्रिराजीवजीवितसदाशयराजहंसः । पूर्वः पुमान् गणहरिर्गणधारिसार --- [कनी] यान् थिरदेवस्य हरिदेवोस्ति बांधवः । हर्षदेवीभवाः पुत्रा नरसिंहादयोस्य च ।। सहोदयः सप्तैत(?)स्य लष्मिणिधर्मकर्मठा । कर्मिणि हरिसणिश्च पुत्र्यस्तिस्त्रो गुणश्रियः ।। १६ ॥ अथ गुरुक्रमः श्रीराजगच्छमुकुटोपमशीलभद्रसूरेविनेयतिलक: किल धर्मसूरिः । दुर्वादिगवंभरसिंधुर सिंहनादः श्रीविग्रहक्षितिपतेर्दलितप्रमादः ।। आनन्दसूरिशिष्यश्रीअमरप्रभसूरितः । श्रुत्वोपदेशं कल्पस्य पुस्तिकां नूतनामिमां ॥१९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122