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अंतिम दोनों दाता प्रशस्तियों से जो गुर्वावली निर्मित होती है, वह इस प्रकार है-- तालिका-४
नंदिवर्धनसूरि
पाठक गुणरत्न
पुण्यराजसूरि वि० सं० १५५०
उदयराजसूरि
वि० सं० १६१२ पूर्व प्रदर्शित तालिका संख्या ३ के सम्बन्ध में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इसमें एक ओर मलयचन्द्रसूरि के गुरु सोमचन्द्रसूरि का उल्लेख है, परन्तु सोमचन्द्रसूरि के गुरु कौन थे ? यह हमें ज्ञात नहीं होता । दूसरी ओर इस तालिका से यह भी ज्ञात होता है कि ज्ञानचन्द्रसूरि के शिष्य सागरचन्द्रसूरि के पश्चात् उनकी शिष्य संतति के बारे में अभिलेखीय साक्ष्य मौन हैं। क्या सागरचन्द्रसूरि की शिष्य सन्तति आगे नहीं चली ? ये दो ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर के लिये हमें अन्यत्र प्रयास करना होगा।
जैसा कि पहले कहा जा चुका है, धर्मघोषगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत एक पट्टावली भी उपलब्ध है, वह है एक अज्ञात लेखक द्वारा १६ वीं शती के अन्तिम चरण के आस-पास लिखी गयी राजगच्छीयपट्टावली'। इसमें न केवल राजगच्छीय आचार्यों अपितु इस गच्छ की शाखा धर्मघोषगच्छ के आचार्यों-ज्ञानचन्द्रसूरि, सागरचन्द्रसूरि, मलयचन्द्रसूरि पद्मशेखरसूरि आदि का भी उल्लेख है। पूर्व प्रदर्शित तालिका २ और ३ में भी उक्त आचार्यों का नामोल्लेख है, अतः इस पट्टावली की प्रामाणिकता असंदिग्ध है। १. मुनि जिनविजय-संपा०विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह [प्रथम भाग]
[सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ५३, बम्बई १९६१ ई०] पृ० ५७-७१ २. जिनपतिमतचित्रोत्सप्पणालिकारो जयति कलियुगेऽस्मिन्
__ गौतमो धर्मसूरिः ॥ ८४ ।।
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