Book Title: Sramana 1990 01
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 57
________________ ( ५७ ) १ राजगच्छीय पट्टावली में सागरचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में मलयचन्द्रसूरि का उल्लेख है, जब कि पूर्व में मलयचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में सीमचन्द्रसूरि का नाम आया है । ऐसा प्रतीत होता है कि मलयचन्द्रसूरि के दीक्षागुरु सोमचन्द्रसूरि थे एवं सागरचन्द्रसूरि ने उन्हें अपने पट्ट पर प्रतिष्ठित किया। जहाँ तक सोमचन्द्रसूरि और सागरचन्द्रस्त्रि का प्रश्न है, वे परस्पर गुरुभ्राता हो सकते हैं क्यों कि किसी आचार्य द्वारा अपने उत्तराधिकारी के रूप में स्वदीक्षित योग्य शिष्य के अभाव में अपने गुरुभ्राता के शिष्य को अपना पट्टधर बनाना अस्वाभाविक नहीं है । उक्त चारों तालिकाओं में दर्शित गुर्वावलियों को परस्पर समायोजिन करने से धर्मघोषगच्छीय आचार्यों का एक विस्तृत विद्यावंशवृक्ष तैयार हो जाता है, जो इस प्रकार है द्रष्टव्य : तालिका संख्या - ५ प्रणाशयन्तो जडतान्धकारं विकासयन्तो भविकैरवाणि । श्रीज्ञानचन्द्रोत्तम सूरिराजपादाः प्रकामं जयिनो भवन्तु ।। ८५ ।। प्रबलवादिमतङ्गज मर्दने हरिरिवोन्नतवाक्यनखाङ्कुरे । य इह जैन मताभिकानने सुशिवदः सुगुरुमुनिशेखरः ॥ ८६ ॥ वन्दामि तं सुगुरुसागरचन्द्रसूरि यस्यामृतोपमवचांसि निशम्यसद्यः । के के कल्हणनृपप्रमुखा बभूवुः जैनेन्द्रधम्मंरुचयो द्विजराजपुत्राः ॥८७॥ श्रीजैनशासन वनी नववारिवाहाः सशनारसनिरस्तसुधाप्रवाहाः । विद्याकलागुणसुलब्धि महानिधानाः श्री सागरेन्दुगुरुवो गुरवो जयन्तु | ८८ भूपाल मालाप्रणतो निरोहः समप्रविद्यागुणलब्धिपात्रम् । सर्वत्र सत्कीर्तितपद्महस्तो मुदेस्तु नित्यं मलयेन्दुसरिः ॥ ८९ ॥ भूयान्मेरुरिव क्षमाभरधरो विख्यातनामा सतां पूज्यः श्रीप्रभुपद्मशेखरगुरुः कल्याणदः शर्मणे ।। ९९ ।। विविध गच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ ६९-७० 1 -गाथा ८८-८९ :-द्रष्टव्य-तालिका संख्या- ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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