Book Title: Sramana 1990 01
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 51
________________ ( ५१ ) धर्मघोषगच्छीय आचार्य अमरप्रभसूरि के शिष्य ज्ञानचन्द्रसूरि' द्वारा वि० सं० १३७४ से १३९६ के मध्य प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें आबू स्थित विमलवसही तथा लणवसही में विद्यमान हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है - वि० सं० १३७४ वैशाख सुदि ४ बुधवार (१ प्रतिमालेख) वि० सं० १३७८ ज्येष्ठ वदि ९ सोमवार (२ प्रतिमालेख) वि० सं० १३७८ वैशाख वदि ९ (३ प्रतिमालेख) वि० सं० १३७८ तिथिविहीन (१३ प्रतिमालेख) वि० सं० १३७९ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार' (१ प्रतिमालेख) वि० सं० १३८९ तिथिविहीन (१ प्रतिमालेख) वि० सं० १३९४ तिथिविहीन (१३ प्रतिमालेख) वि० सं० १३९६ वैशाखसुदि ८ (१ प्रतिमालेख) मिति/तिथि विहीन (३ प्रतिमालेख) धर्मघोषगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं में१५वीं-१६ वीं शती की प्रतिमाओं की संख्या सर्वाधिक है। यह तथ्य उन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों से ज्ञात होता है। इन लेखों में यद्यपि इस गच्छ के अनेक आचार्यों का नामोल्लेख आया है, तथापि उनमें से कुछ आचार्यों के पूर्वापर सम्बन्ध ही निश्चित हो सके हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है १-ज्ञानचन्द्रसूरि के पट्टधर सागरचन्द्रसूरि-पागरचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित ८ प्रतिमा लेख अद्यावधि उपलब्ध हैं, जो वि० सं० १४२६ से वि० सं० १४६३ तक के हैं। - २ -सोमचन्द्र के पट्टधर देव चन्द्रसूरि -वि० सं० १४२२ का १ प्रतिमालेख ३ -- सोमचन्द्रसूरि के पट्टधर मलयचन्द्रसूरि मलयचन्द्ररि द्वारा प्रतिष्ठापित ४ लेखयुक्त प्रतिमायें आज उपलब्ध हैं जो वि० सं० १४५९ से वि० सं० १४६५ तक की हैं। १. द्रष्टव्य-मुनि जयन्तविजय-संपा० "अबुंदप्राचीनजनलेखसंदोह" अनु क्रमणिका, पृ० ३५ २. मुनि जिनविजय-संपा० प्राचीनजनलेखसंग्रह; भाग २, लेखाङ्क १३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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