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.. [ ७ ] . अध्याय . प्रधानविषय
पृष्ठा दया करना, मन को दमन करना, क्षमा करना ये मनुष्य मात्र के धर्म हैं (१२२)। यज्ञ करने का विधान (१२३-१३०)। स्नातकधर्मप्रकरणवर्णनम् ।
१२४७ ब्रह्मचारी के नित्य नैमित्तिक कमों का वर्णन किया गया है (१३१-१४२)। उपाकम और उत्सर का समय और विधान तथा ३७ अनध्याय के काल बताये गये हैं ( १४३-१५१ )। ब्रह्मचारी और गृहली के विशेष धम (१५२-१५५)। गृहस्थियों को जिन मनुष्यों से मिलजुल कर रहना चाहिये जैसे वैध इत्यादि (१५६-१५८)। सदाचार और जिनका अन्न नहीं खाना चाहिये उनका निर्देश (१५६-१६५)। भक्ष्यामध्यप्रकरणवर्णनम् ।
१२५० निषिद्ध भोजन की गणना (१६६-१७६)। मांस के सम्बन्ध में विचार और मांस न खाने का माहात्म्य (१७७-१८१)। .