________________
अध्याय
[ ५६ ] प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क पुत्ररहितस्यधनमाजनेक्रमवर्णनम् । १५१५ पुत्र के होने से पिता पितृमृण से छुटकारा पा जाता है। पुत्रवान् को स्वर्गादि लोक प्राप्ति, क्षेत्रज पुत्र उसका पुत्र है जिसने गर्भाधान किया है ( १-३८)। एक पिता के कई पुत्र हाँ उनमें यदि एक भाई के भी पुत्र है तो सब भाई पुत्रवाले माने जाते हैं इसी प्रकार किसी के तीन चार स्त्री हो उनमें यदि एक स्त्री के भी सन्तान हो जाय तो सब पुत्रवती मानी जाती है। दायाद अदायाद सन्तति का वर्णन । स्वयमुपागत पुत्र के सम्बन्ध में हरिश्चन्द्र अजीगत का इतिहास तथा शुनशेप के यूपबन्धन का इतिहास जैसे वह विश्वामित्र का पुत्र हुआ। दाय विभाग का वर्णन, दायाद ६
पुत्र एवं अदायाद ६ पुत्रों का वर्णन (३८-७६) । १८ चाण्डालादिजात्यन्तरनिरूपणम् । १५१६
चाण्डालादि जाति प्रतिलोम से बताई है, जैसेब्राह्मणी माता शूद्र पिता से जो सन्तान हो वह चाण्डाल होती है। इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक मनुष्य अपनी अपनी जाति में विवाह करे उससे जो सन्तान होगी वह धार्मिक तथा