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[ ३५ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठा १० प्रातःकालिकस्नानादिक्रियावर्णनम्- १४५०
प्रातःकाल का खान, नदी की परिभाषा, नदी कितनी वेगवती धारा को कहते हैं। दन्तधावन, मुख और नेत्र प्रक्षालन की विधि । कूप मान भी गंगा स्नान के समान ग्रहण आदि पर्व में होता है
(१-१४)। ११ सन्ध्योपासनविधिवर्णनम्
। १३५१ सन्थ्योपासन का निर्देश-जबतक सन्ध्या न करे तबतक अन्य किसी देव एवं पितृ कार्य को करने का अधिकार नहीं है। सन्ध्या विधि एवं सूर्योपखान
कर्म (१-१७ )। १२ तर्पणविधिवर्णनम्
१३५३ देव, ऋषि तथा पितृ तर्पण की विधि बताई गई है
(१-६)। १३ पञ्चमहायज्ञविधिवर्णनम्----
१३५४ पञ्च महायज्ञ-देवयज्ञ, भूतयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, पितृयज्ञ और मनुष्ययज्ञ इनको महायज्ञ कहा है तथा नित्य करने की विधि बताई है ( १-१४ )।