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अध्याय
[ ५१ ]
प्रधानविपाया धर्म का वर्णन | महापाप, फाफ तथा उपपातकों का वर्णन। प्राय, देव, आर्ष और प्राजापत्य विवाह का वर्णन। सब वर्गों को प्राण से उपदेश ग्रहण करने की विधि (१-४५)। ब्राबणादीनांप्रधानकर्माणि-पातित्य हेतवः कृषिधर्म निरूपणम् ।
१४७१ वाधुषिकान्नमक्षणे, ब्रावणराजन्यायोनिषेधः १४७३ द्विजत्व की परिभाषा तथा आचार्य की श्रेष्ठता बताई है। ब्राह्मण के षद् कर्म का निरूपण, गुरु की आज्ञा पालन, प्रत्येक वर्ण की अपनी अपनी वृत्ति का वर्णन । धन अनादि की वृद्धि की सीमा और धन वृद्धि पर ब्राह्मण क्षत्रिय को निषेध
बताया है (१-५५)। ३ अश्रोत्रियादीनां शूद्रसधर्मत्वमाततायिवध वर्णनञ्च ।
१४७५ आचार्य लक्षणम्, श्वहत मृगादीनां शुचित्ववर्णनम्।
१४७७ अनेक शुद्धिः, शूद्रस्यासंस्कारे हेतुवर्णनम् १४७६ ब्राह्मण को वेद पढ़ना आवश्यक। बिना वेद विद्या