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[ ४ ]
अध्याय
प्रधानविषय
१ धानी करने पर भी विपत्ति आ जाय तो उसका दोष नहीं होता है । किन्तु औषधि तथा भोजन भी मात्रा से अधिक देना पाप हैं ।
द्वौमासौ पाययेद्वत्सं द्वौमासौ द्वौ स्तनौ दुहेत्, द्वौमासावेकवेलायां शेषकाले यथारुचि । २१ दशरात्रादूर्द्ध मासेन गौस्तु यत्र विपद्यते, स शिखं वपनं कृत्वा प्राजापत्यं समाचरेत् ॥ २२ गाय के बन्धन कैसी रस्सियों से कैसे कीले पर बाँधना यह बताया है ( १-३४ ) ।
२ शुद्ध्यशुद्धिविवेकवर्णनम् ।
उदकशुद्धिनिरूपणं, वापीकूपादीनां -शुद्धि
वर्णनम् ।
पृष्ठाङ्क
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शुद्धि और अशुद्धि का वर्णन, जैसे— काम करने वाले मनुष्यों को जल पानी की छूतपात नहीं होती है । वापी, कूप, तड़ाग जहाँ खारिया जल निकलता हो वह अशुद्ध नहीं होता है। पेशाब मल तथा थूकने से जल अंशुद्ध हो जाता है ( १-१४ ) ।