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प्रधानविषय
अभ्याय
१ द्रव्यशुद्धिप्रकरणवर्णनम् ।
यज्ञ पात्रादि की शुद्धि । किस चीज से किस की शुद्धि होती है (१८२-१८६) । शुद्धि का वर्णन, जल की शुद्धि, स्थान की शुद्धि, पक्के मकान की शुद्धि आदि (१८७ - १६८) ।
१ दानप्रकरणवर्णनम् ।
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१ श्राद्धप्रकरणवर्णनम् ।
ब्राह्मण की प्रशंसा और पात्र का लक्षण बताया है (१६६ - २००) । गौ, पृथिवी, हिरण्य आदि का दान सत्पात्र को देना चाहिये । अपात्र को देने में दोष (२०१ - २०२) । गोदान का फल, गोदान की विधि और गोदान का माहात्म्य । २०३-२०८) । पृथिवी, दीपक, सवारी, धान्य, पादुका, छत्र और धूप आदि दान का माहात्म्य । जो ब्राह्मण दान लेने में समर्थ है वह न लेवे तो उसे बड़ा पुण्य होता है ( २०६ - २१२ ) । कुशा. शाक, दूध, दही और पुष्प यह कोई अपने को अर्पण करे तो वापस नहीं करना चाहिये (२१३-२१४) ।
पृष्ठाङ्क
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पुण्यकाल का वर्णन, जैसे- अमावस्या व्यतिपात