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अन्याय . प्रधानविषय
पृष्ठाक और सवर्णा बी के होने पर उसके साथ ही धर्मकाम करने का निर्देश किया गया है। सवर्णा
सी से जो पुत्र उत्पन्न होता है उसी को पुत्र . कहते हैं (८६-६०)। . .. १ वर्णजातिविवेकवर्णनम्
१२४३ अनुलोम और प्रतिलोम जो सन्तान होती है
उनकी संज्ञा (६१-६६)। १ गृहस्वधर्मप्रकरणवर्णनम् ।
१२४४ स्लान, तर्पण, सन्च्या, अतिथि सत्कार का वर्णन (१५-१०७)। गृहली को अतिथि सत्कार सबसे बड़ा यह बताया है (१०८-११४)। आचरण, सभ्यता और ब्राह्मण क्षत्रिय आदि जातियों के विशेष कर्म (११५-१२१)। अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः । दानं दया दमः शान्ति सर्वेषां धर्मसाधनम् ॥ -किसी की हिंसा न करना, सत्य कहना, किसी का द्रव्य न चुराना, पवित्र रहना, अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना, दान देना, सब जीवों पर