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. [ १० ] अध्याय
प्रधानविषय . पृष्ठाङ्क १ . ग्रहशान्तिप्रकरणवर्णनम् ।
१२६२ नवग्रह की शान्ति, ग्रहों के मन्त्र, उनका दान और जप बताया गया है और अन्त में कहा गया हैग्रहाधीना नरेन्द्राणामुच्छ्याः पतनानि च । भवामावौ च जगतस्तस्मात् पूज्यतमाः स्मृताः॥ अर्थात् राजाओं की उन्नति तथा अवनति, संसार की भावना और अभावना सब प्रहचक्रों पर निर्भर रहता है। अतः ग्रह शान्ति करनी चाहिये प्रह किस धातु का बनाना चाहिये यह भी बताया
गया है (२६३-३०८)। १ राजधर्म प्रकरण वर्णनम् ।
१२६३ शासक राजा के लक्षण और उसकी योग्यता ( ३०६-३११) । राजा. को कैसे मन्त्री और पुरोहितों ज्योतिषियों को रखना, उनके लक्षण । जो दण्डनीति और अथर्व विद्या में कुशल हो ऐसे मन्त्री और पुरोहित को रखना चाहिये। राजा का निवास स्थान नगर से दूर जंगल में हो और दुर्ग रचना किस प्रकार करनी चाहिये। अन्त