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अध्याय
प्रधानविषय
२ व्यवहार के चार वाद बतलाये हैं । जैसेआवेदन ( दरखास्त ), प्रत्यर्थी के सामने लेख, सम्पूर्ण कार्य का वर्णन, प्रत्यर्थी के उत्तर, इकरार लिखना ( झूठा होने पर दण्ड होगा ) ( ५-८ ) । जिस पर एक अभियोग हुआ है उसका फैसला नहीं होने तक दूसरा अभियोग नहीं लगाया जाता है। चोरी मारपीट का अभियोग उसी समय लगाया जाता है। दोनों से जमानत लेनी चाहिये। झूठे मुकदमे में दुगुना दण्ड लगाना चाहिये ( ६-१२) । झूठे बनावटी गवाह की पहचान उसके पसीना आने लगता है तथा दृष्टि स्थिर नहीं रहती है (१३-१५) । दोनों पक्ष के साक्षी होने पर पहले वादी के साक्षी लेने चाहिये। जब दादी का पक्ष गिर जाय तब प्रतिबादी अपने पक्ष को साक्षी से पुष्ट करें इत्यादि । यदि झूठा मुकदमा हो तो उसे प्रत्यक्ष प्रमाणों से शुद्ध कर लेवे। जहां दो स्मृतियों में विरोध हो वहां व्यवहार से निर्णय करना । अर्थशास्त्र और धर्मशास्त्र के मिलने में विरोध आ जाय वहां धर्मशास्त्र को ऊँचा स्थान देना चाहिये (१६-२० ) । प्रमाण तीन प्रकार के होते
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