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( ३२ ) अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क ३ मद्य पीनेवाला तथा जो इनके साथ रहता है वह .
भी महापातकी होता है। इसके बाद आगे के श्लोकों में उपपातकों की गणना की है। महापातकी को आमरणान्त प्रायश्चित्त बतलाया है। अन्य पापों की शुद्धि के लिये चान्द्रायण आदि व्रत बतलाये हैं। गर्भपात और भर्तृ हिंसा स्त्री के लिये महापाप है। शरणागत को मारने वाले की . . बच्चों को मारनेवाले, स्त्री के हिंसक और कृतघ्न की कभी शुद्धि नहीं होती है। सान्तपन कृच्छ्र, पर्णकृच्छ, पादकृच्छ्र, तप्तकृच्छ्रे, अतिकृच्छ्र, कच्छातिकृच्छ, तुला पुरुष, चान्द्रायण व्रत और कृच्छचान्द्रायणादि व्रत बतलाये गये हैं। ऋषियों ने याज्ञवल्क्य से धर्मों को सुनकर यह कहा कि जो इसको धारण करेगा वह इस लोक में यश को प्राप्त कर अन्त में स्वर्गलोक को प्राप्त होगा। जो जिस कामना.से धारण करेगा .उसकी कामनाय पूर्ण सफल होंगी । ब्राह्मण इसको जानने से सत्पात्र, क्षत्रिय विजयी, वैश्य धनधान्य सम्पन्न, विद्यार्थी विद्यावान होता है। इसको जानने और मनन करने से अश्वमेध यज्ञ के फल, को प्राप्त होता है (२०६-२३४)।