Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 186
________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 179 ज्ञोऽनुपसर्गात् / 3 / 3 / 96 // अतः ‘फलवति- कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / गां जानीते / फलवतीत्येव- परस्य गां जानाति // 16 // वदोऽपात् / 3 / 3 / 97 // अतः ‘फलवति कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / एकान्तमपवदते / फलवतीत्येवअपवदति परं स्वभावात् // 97 // समुदाङो यमेरग्रन्थे / 3 / 3 / 98 // एभ्यः पराद् यमेरग्रन्थविषये ‘फलवत्कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संयच्छते व्रीहीन्, उद्यच्छते भारम्, आयच्छते भारम् / अग्रन्थ इति किम् ? चिकित्सामुद्यच्छति / फलवतीत्येव- संयच्छति // 98 // . पदान्तरगम्ये वा / 3 / 3 / 99 // 'प्रक्रान्तसूत्रपञ्चके यदात्मनेपदमुक्तं तत् पदान्तरगम्ये फलवत्कर्तरि वा' स्यात् / स्वं शत्रु परिमोहयते परिमोहयंति वा / स्वं यज्ञं यजते यजति वा / स्वां गां जानीते जानाति वा / स्वं शत्रुमपवदते अपवदति वा / स्वान् व्रीहीन् संयच्छते संयच्छति वा // 99 // . शेषात् परस्मै / 3 / 3 / 100 // 'येभ्यो धातुभ्यो येन विशेषेणाऽऽत्मनेपदमुक्तं ततोऽन्यस्मात् कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / भवति, अत्ति // 100 // - परानोः कृगः / 3 / 3 / 101 // परानुपूर्वात् कृगः ‘कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / पराकरोति, अनुकरोति // प्रत्यभ्यतेः क्षिपः / 3 / 3 / 102 // एभ्यः परात् क्षिपः ‘कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / प्रतिक्षिपति, अभिक्षि

Loading...

Page Navigation
1 ... 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250