Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 220
________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 213 घ्यण्यावश्यके / 4 / 1 / 115 // 'आवश्यकोपाधिके घ्यणि च-जोः क-गौ न' स्याताम् / अवश्यपाच्यम्, अवश्यरज्यम् / आवश्यक इति किम् ? पाक्यम् // 115 // नि-प्राद् युजः शक्ये / 4 / 1 / 116 // आभ्याम् 'युजः शक्ये गम्ये घ्यणि गो न' स्यात् / नियोज्यः, प्रयोज्यः / शक्य इति किम् ? नियोग्यः // 116 / / भुजो भक्ष्ये / 4 / 11117 // 'भुजो भक्ष्यार्थे घ्यणि गो न' स्यात् / भोज्यं पयः / भक्ष्य इति किम् ? भोग्या भूः // 117 // त्यज-यज-प्रवचः / 4 / 11118 // एषाम् ‘ध्यणि क-गौ न' स्याताम् / त्याज्यः, याज्यः, प्रवाच्यः // 118 // - वचोऽशब्दनाम्नि / 4 / 1 / 119 // 'अशब्दसंज्ञायां वचेय॑णि को न' स्यात् / वाच्यम् / अशब्दनाम्नीति किम् ? वाक्यम् // 119 // - भुज-न्युजं पाणि-रोगे / 4 / 1 / 120 // "भुजेन्युनेश्च घञन्तस्य पाणी रोगे चार्थे यथासंख्यं भुजन्युजौ निपात्येते' / भुजः पाणिः, न्युब्जो रोगः // 120 // वीरुन्-न्यग्रोधौ / 4 / 1 / 121 // 'विपूर्वस्य रुहेः क्विपि, न्यक्पूर्वस्य चाऽचि वीरुन्न्यग्रोधौ एतौ धान्ती निपात्येते' / वीरुत्, न्यग्रोधः // 121 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्तौ चतुर्थस्याध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः // 41 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250