Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan
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________________ ... श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 221 'अनर्वार्थस्यैवाञ्चेरुपान्त्यस्य नो लुक् स्यात् / उदक्तमुदकं कूपात् / अनायामिति किम् ? अञ्चिता गुरवः // 46 // लङ्गि-कम्प्योरुपतापा-ऽङ्गविकृत्योः / 4 / 2 / 47 // 'अनयोरुपान्त्यनो यथासङ्ख्यमुपतापेऽङ्गविकारे चार्थे क्ङिति परे लुक्' स्यात् / विलगितः, विकपितः / उपतापाङ्गविकृत्योरिति किम् ? विलङ्गितः, विकम्पितः // 47 // भनेर्जी वा 4 // 2 // 48 // 'भोरुपान्त्यनो औ परे लुंग वा' स्यात् / अभाजि, अभजि // 48 // दंश-सञः शवि / 4 / 2 / 49 // 'अनयोरुपान्त्यनः शवि लुक्' स्यात् / दशति, सजति // 49 // . अकट-घिनोश्च रोः / 4 / 2 / 50 // 'रअरकटि घिनणि शवि चोपान्त्यनो लुक्' स्यात् / रजकः, रागी, रजति // 50 // णौ मृगरमणे / 4 / 2 / 51 // 'रजेरुपान्त्यनो णौ मृगाणां रमणेऽर्थे लुक्' स्यात् / रजयति मृगं व्याधः / मृगरमण इति किम् ? रजयति रजको वस्त्रम् // 51 // घत्रि भाव-करणे // 4 // 2 // 52 // 'रजेरुपान्त्यनो भावकरणार्थे घञि लुक्' स्यात् / रागः / भाव-करण इति किम् ? आधारे-रगः // 52 // स्यदो जवे / 4 / 2 / 53 // 'स्यन्देशि नलुग-वृद्ध्यभावी निपात्येते वेगेऽर्थे / गोस्यदः / जव इति किम् ? घृतस्यन्दः // 53 //
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