Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan

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Page 244
________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 237 हन्तेरात्मनेपदविषयः 'सिच् किद्वत्' स्यात् / आहत // 38 // यमः सूचने / 4 / 3 / 39 // सूचनार्थाद् यमेरात्मनेपदविषयः 'सिच् किद्वत्' स्यात् / उदायत / सूचन इति किम् ? आयस्त रज्जुम् // 39 // वा स्वीकृतौ / 4 / 3 / 40 // स्वीकारार्थाद् यमेरात्मनेपदविषयः 'सिच् किद्वद्वा' स्यात् / उपायत, उपायंस्त महास्त्राणि / स्वीकृताविति किम् ? आयंस्त पाणिम् // 40 // इश्च स्था-दः / 4 / 3 / 41 // स्थो दासंज्ञकाच्चाऽऽत्मनेपदविषयः 'सिच् किद्वत् स्यात्, तद्योगे स्थादोरिश्च' / उपास्थित, आदित, व्यधित // 41 // मृजोऽस्य वृद्धिः // 4 // 3 // 42 // 'मृजेर्गुणे सति अस्य वृद्धिः' स्यात् / मार्टि / अत इति किम् ? मृष्टः // ऋतः स्वरे वा / 4 / 3 / 43 // .. मृजे ऋतः स्वरादौ प्रत्यये 'वृद्धिर्वा' स्यात् / परिमार्जन्ति, परिमृजन्ति ऋत इति किम् ? ममार्ज / स्वर इति किम् ? मृज्यः // 43 // सिचि परस्मै समानस्याऽङिति / 4 / 3 // 44 // समानान्तस्य धातोः परस्मैपदविषये सिच्यङिति 'वृद्धिः' स्यात् / अचैषीत् / परस्मै इति किम् ? अच्योष्ट / समानस्येति किम् ? अगवीत् / अङितीति किम् ? न्यनुवीत् // 44 // व्यञ्जनानामनिटि / 4 / 3 / 45 // व्यञ्जनान्तस्य धातोः परस्मैपदविषये अनिटि सिचि समानस्य ‘वृद्धिः' स्यात् / अराङ्क्षीत् / समानस्येत्येव - उदवोढाम् / अनिटीति किम् ?

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