Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan
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________________ 238 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अतक्षीत् // 45 // ___ वोर्गुगः सेटि / 4 // 3 // 46 // ऊण्र्णोः सेटि सिचि परस्मैपदे 'वृद्धिर्वा' स्यात् / प्रौर्णावीत्, प्रौर्णवीत्, प्रौण्णुवीत् // 46 // ___ व्यअनादेोपान्त्यस्याऽतः / 4 / 3 / 47 // व्यञ्जनादेर्धातोरुपान्त्यस्याऽतः सेटि सिचि परस्मैपदे 'वृद्धिर्वा' स्यात् / अकाणीत्, अकणीत् / व्यञ्जनादेरिति किम् ? मा भवान् अटीत् / उपान्त्यस्येति किम् ? अवधीत् / अत इति किम् ? अदेवीत् / सेटीत्येव - अधाक्षीत् // 47 // . वद-व्रज-लः / 4 / 3 / 48 // .. वद-व्रजोर्लन्त-रन्तयोश्योपान्त्यस्याऽस्य परस्मैपदे सेटि सिचि ‘वृद्धिः' स्यात् / अवादीत्, अव्राजीत्, अज्वालीत्, अक्षारीत् // 48 // . न श्वि-जागृ-शस-क्षणम्येदितः / 4 / 3 / 49 // एषां म्यन्तानाम् एदितां च परस्मैपदे सेटि सिचि ‘वृद्धिर्न' स्यात् / अश्वयीत्, अजागरीत्, अशसीत्, अक्षणीत्, अग्रहीत्, अवमीत्, अहयीत्, अकगीत् // 49 // णिति / 4 / 3 / 50 // . जिति णिति च परे धातोरुपान्त्यस्याऽतो 'वृद्धिः' स्यात् / पाकः, पपाच // नामिनोऽकलि-हलेः // 4 // 3 // 51 // नाम्यन्तस्य धातो म्नो वा कलि-हलिवर्जस्य णिति 'वृद्धिः' स्यात् / अचायि, कारकः, अपीपटत् / कलि-हलिवर्जनं किम् ? अचकलत्, अजहलत् // जागुर्जि-णवि // 4 // 3 // 52 // . जागुर्जी णव्येव च णिति 'वृद्धिः' स्यात् / अजागारि, जजागार / त्रिण
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