Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan
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________________ 236 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् क्षुध-क्लिश-कुष-गुध-मृड-मृद-वद-वसः / 4 // 3 // 31 // एभ्यः ‘क्त्वा सेट् किद्वत्' स्यात् / क्षुधित्वा, क्लिशित्वा, कुषित्वा, गुधित्वा, मृडित्वा, मृदित्वा, उदित्वा, उषित्वा // 31 // . रुद-विद-मुष-ग्रह-स्वप-प्रच्छः सन् च / 4 / 3 / 32 // एभ्यः क्त्वा सन् च किद्वत्' स्यात् / रुदित्वा, रुरुदिषति; विदित्वा, विविदिषति; मुषित्वा, मुमुषिषति; गृहीत्वा, जिघृक्षति, सुप्त्वा, सुषुप्सति; पृष्ट्वा, पिपृच्छिषति // 32 // . नामिनोऽनिट् // 4 // 3 // 33 // 'नाम्यन्ताद्धातोरनिट् सन् किद्वत्' स्यात् / चिचीषति / अनिडिति किम् ? शिशयिषते // 33 // उपान्त्ये 4 // 3 // 34 // नामिन्युपान्त्ये सति 'धातोः सन् अनिट् किद्वत्' स्यात् / बिभित्सति // 34 // सिजाशिषावात्मने / 4 / 3 // 35 // नामिन्युपान्त्ये सति * धातोरात्मनेपदविषयावनिटी 'सिजाशिषी किद्वत्' स्याताम् / अभित्त, भित्सीष्ट / आत्मने इति किम् ? अनाक्षीत् // 35 // ऋवर्णात् // 4 // 3 // 36 // . ऋवर्णान्ताद् धातोरनिटावात्मनेपदविषयौ 'सिजाशिषौ किद्वत्' स्याताम् / अकृत, कृषीष्ट; अतीर्ट, तीर्षीष्ट // 36 // गमो वा // 4 // 3 // 37 // गमेरात्मनेपदविषयी 'सिजाशिषौ किद्वद्वा' स्याताम् / समगत, समगस्त; संगसीष्ट, संगसीष्ट // 37 // हनः सिच् / 4 / 3 // 3 //
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