Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan
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________________ 234 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 'विजेरिट ङिद्वत्' स्यात् / उद्विजिता / इडिति किम् ? उद्वेजनम् // 18 // वोर्णोः / 4 / 3 / 19 // 'ऊोरिड् वा ङिद्वत्' स्यात् / प्रोणुविता, प्रोणविता // 19 // - शिदवित् / 4 / 3 // 20 // 'धातोर्विद्वर्जः शित् प्रत्ययो द्वित्' स्यात् / इतः, क्रीणाति / अविदिति किम् ? एति / शिदिति किम् ? चेषीष्ट // 20 // इन्थ्यसंयोगात् परोक्षा किद्वत् / 4 / 3 / 21 // इन्धेरसंयोगान्ताच्च परा ‘अवित्परोक्षा किद्वत्' स्यात् / समीधे, निन्युः / इन्ध्यसंयोगादिति किम् ? सनंसे // 21 // . स्व नवा 4 // 3 // 22 // स्वजेः ‘परोक्षा वा किद्वत्' स्यात् / सस्वजे, सस्वजे // 22 // ज-नशो न्युपान्त्ये तादिः क्त्वा / 4 / 3 / 23 // जन्तात् नशेश्च न्युपान्त्ये सति 'तादिः क्त्वा किद्वद्वा' स्यात् / रक्त्वा, रङ्क्त्वा ; नष्ट्वा, नंष्ट्वा / नीति किम् ? भुक्त्वा / उपान्त्य इति किम् ? निक्त्वा / तादिरिति किम् ? विभज्य // 23 // ऋत्-तृष-मृष-कृश-वञ्च-लुञ्च-थ-फः सेट् // 4 // 3 // 24 // न्युपान्त्ये सत्येभ्यो ‘वा क्त्वा सेट् किद्वत्' स्यात् / ऋतित्वा, अर्तित्वा; तृषित्वा, तर्षित्वा; मृषित्वा, मर्षित्वा; कृशित्वा, कर्शित्वा; वचित्वा, वञ्चित्वा; लुचित्वा, लुञ्चित्वा; श्रथित्वा, श्रन्थित्वा; गुफित्वा, गुम्फित्वा / न्युपान्त्य इति किम् ? कोथित्वा, रेफित्वा / सेडिति किम् ? वक्त्वा // 24 // वौ व्यञ्जनाऽऽदेः सन् चाऽय-वः // 4 // 3 // 25 // वौ उदित्युपान्त्ये सति व्यअनादेर्धातोः परः ‘क्त्वा सन् च सेटौ किद्वद्वा स्यातां
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