Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan
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________________ 228 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् क्रीणन्ति / अवितीत्येव- अजहाम्, अक्रीणाम् / / 16 / / एषामीळननेऽदः / 4 / 2 / 97 // द्वयुक्त-जक्षपञ्चतः श्नश्चा'ऽऽतः शित्यविति व्यञ्जनादावीः स्यात्, न तु दासंज्ञस्य' / मिमीते, लुनीतः / व्यञ्जन इति किम् ? मिमते / अद इति किम् ? दत्तः, धत्तः // 97 // इर्दरिद्रः / 4 / 2 / 98 // 'दरिद्रो व्यञ्जनादौ शित्यवित्यात इ.' स्यात् / दरिद्रितः / व्यञ्जन इत्येवदरिद्रति // 98 // भियो नवा / 4 / 2 / 99 // भियो व्यञ्जनादौ शित्यविति 'इर्वा' स्यात् / बिभितः, विभीतः // 19 // हाकः / 4 / 2 / 100 // हाको व्यञ्जनादौ शित्यविति 'आत इर्वा' स्यात् / जहितः, जहीतः // आ च हौ / 4 / 2 / 101 // हाको हौ ‘आत् इश्व वा' स्यात् / जहाहि, जहिहि, जहीहि // 101 // यि लुक् / 4 / 2 / 102 // यादौ शिति हाक 'आ लुक्' स्यात् / जह्यात् / / 102 // ओतः श्ये / 4 / 2 / 103 // 'धातोरोतः श्ये लुक्' स्यात् / अवद्यति / श्य इति किम् ? गौरिवाऽऽचरति गवति / / 103 // जा ज्ञा-जनोऽत्यादौ / 4 / 2 / 104 // ज्ञा-जनोः शिति 'जाः' स्यात्, न त्वनन्तरे तिवादौ / जानाति, जायते / अत्यादाविति किम् ? जाज्ञाति, जान्ति // 104 // *
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