Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan
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________________ / 216 . श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् लियः स्नेहद्रवे गम्ये णौ 'नोऽन्तो वा' स्यात् / घृतं विलीनयति, विलाययति / स्नेहद्रव इति किम् ? अयो विलाययति // 15 // लो लः / 4 / 2 / 16 // लारूपस्य णौ स्नेहद्रवे गम्ये 'लोऽन्तो वा' स्यात् / घृतं विलालयति विलापयति वा / स्नेहद्रव इत्येव- जटाभिरालापयते // 16 // पातेः / 4 / 2 / 17 // पातेी 'लोऽन्तः' स्यात् / पालयति // 17 // धूग-प्रीगोनः // 4 // 2 // 18 // धूम्-प्रीगोर्णी 'नोऽन्तः' स्यात् / धूनयति, प्रीणयति // 18 // वो विधूनने जः / 4 / 2 / 19 // वा इत्यस्य विधूननेऽर्थे णौ 'जोऽन्तः' स्यात् / पक्षण उपवाजयति / विधूनन इति किम् ? उच्चैः केशानावापयति // 19 // पा-शा-छा-सा-वे-व्या-हो यः / 4 / 2 / 20 // एषां णौ ‘योऽन्तः' स्यात् / पाययति, शाययति, अवच्छाययति, अवसाययति, वाययति, व्याययति, ह्वाययति // 20 // अर्ति-री-व्ली-ही-क्नूयि-क्ष्माय्यातां पुः / 4 / 2 / 21 // एषामादन्तानां च णौ 'पुरन्तः' स्यात् / अर्पयति, रेपयति, ब्लेपयति, रुपयति, क्नोपयति, मापयति, दापयति, सत्यापयति // 21 // स्फाय स्फाव् / 4 / 2 / 22 // णौ स्फायः ‘स्फाव्' स्यात् / स्फावयति // 22 // शदिरगतौ शात् / 4 / 2 / 23 // शदिरगत्यर्थे णौ 'शात्' स्यात् / पुष्पाणि शातयति / अगताविति किम् ?
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