Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan
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________________ 218 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् रोगम्; अशामि, अशमि; शामंशामम्, शमंशमम् / अदर्शन इति किम् ? निशामयति रूपम् // 28 // यमोऽपरिवेषणे णिचि च / 4 / 2 / 29 // अपरिवेषणार्थस्य यमो णिचि अणिचि च णौ 'इस्वः स्यात्, ञिणम्परे तु वा दीर्घः' / यमयति; अयामि, अयमि; यामयामम्, यमंयमम् / अपरिवेषण इति किम् ? यामयत्यतिथिम् // 29 // मारण-तोषण:निशाने ज्ञश्च / 4 / 2 // 30 // एष्वर्थेषु ज्ञो णिचि अणिचि च णौ ‘ह्रस्वः स्यात्, जिणम्परे तु वा दीर्घः' / संज्ञपयति पशुम्, विज्ञपयति राजानम्, प्रज्ञपयति शस्त्रम् / अज्ञापि, अज्ञपि; ज्ञापंज्ञापम्, ज्ञपंज्ञपम् // 30 // चहणः शाठ्ये 14 // 2 // 31 // चहेश्चुरादेः शाठ्यार्थस्य णिचि णौ 'ह्रस्वः स्यात्, जिणम्परे तु वा दीर्घः' / चहयति; अचाहि, अचहि; चाहंचाहम्, चहचहम् / शाठ्य इति किम् ? अचहि // 31 // ज्वल-बल-झल-ग्ला-स्ना-वनू-वम-नमोऽनुपसर्गस्य वा / 4 / 2 / 32 // एषामनुपसर्गाणां णौ 'इस्वो वा' स्यात् / ज्वलयति, ज्वालयति; ह्वलयति, ह्यालयति; ह्मलयति, ह्यालयति; ग्लपयति; ग्लापयति; स्नपयति, स्नापयति; वनयति, वानयति, वमयति, वामयति; नमयति, नामयति / अनुपसर्गस्येति किम् ? प्रज्वलयति, प्रह्वलयति, प्रह्मलयति, प्रग्लापयति, प्रस्नापयति, प्रवनयति, प्रवमयति, प्रणमयति // 32 // छदेरिस-मन-बट-क्वौ / 4 / 2 // 33 // छदेरिस्-मन्-त्रट-क्विप्परे णौ 'ह्रस्वः' स्यात् / छदिः, छद्म, छत्री;
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