Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Mokshaiklakshi Prakashan

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Page 187
________________ 180 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // पति, अतिक्षिपति / / 102 // प्राद् वहः / 3 / 3 / 103 // अतः ‘कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / प्रवहति // 103 / / परेम॒षश्च / 3 / 3 / 104 // परेः परान्मृषेर्वहेश्च ‘कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / परिमृष्यति, परिवहति // व्याङ्-परे रमः / 3 / 3 / 105 // एभ्यः पराद् रमेः 'कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / विरमति, आरमति, परिरमति // 105 // . वोपात् / 3 / 3 / 106 // उपाद् रमेः 'कर्तरि परस्मैपदं वा' स्यात् / भार्यामुपरमति, उपरमते या // अणिगि प्राणिकर्तृकानाप्याण्णिगः / 3 / 3 / 107 // अणिगवस्थायां यः प्राणिकर्तृकोऽकर्मकश्च धातुस्तस्मात् णिगन्तात् 'कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / आसयति चैत्रम् / अणिगीति किम् ? स्वयमेवारोहयमाणं गजं प्रयुले आरोहयते / अणिगिति गकारः किम् ? चेतयमानं प्रयुङ्क्ते-चेतयति / प्राणिकर्तृकादिति किम् ? शोषयते व्रीहीन् आतपः / अनाप्यादिति किम् ? कटं कारयते // 107 // चल्याहारार्थेङ्-बुध-युध-गु-द्रु-सु-नश-जनः / 3 / 3 / 108 // चल्या -ऽऽहारार्थेभ्य इडादिभ्यश्च णिगन्तेभ्यः ‘कर्तरि परस्मैपदम्' स्यात् / चलयति, कम्पयति; भोजयति, आशयति चैत्रमन्नम्। सूत्रमध्यापयति शिष्यम्, बोधयति पद्मं रविः, योधयति काष्ठानि, प्रावयति राज्यम्, द्रावयत्ययः, नावयति तैलम्, नाशयति पापम्, जनयति पुण्यम् // 108 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन

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