Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 19 क्रीडा कीधी नाटक निरख्यां, अवर नही उपयोग । दुःख सवे मुंक्य' विसारी, विलशा (से) अमरीभोग ||६६ || परनी देवी देखी झूर्या, तृपति न पाम्यो जंत"। पूरी आय इसी परि आण्यो देवलोक भव अंत ॥६७॥ बली आपण पणि वार अनंती, आव्या माणसमाहिं । गर्भवासि बाला (ल) पणि बहुली, वेदन पडिया प्रचाहिं | १६७ || हुं नारी तुझे पुरुष सरूपिं, तुम्हे नारि हुं पुरुष । इम घरवासि वार अनंती, आपण भोगव्यां सुख ||६२ ।। जुलाई २०१४ 2 हुं नरग मझारि विगूतो नारी पडीओ सुरनई पासि । काल अनंत मोह वसि रलीओ, हवइं न रहु घरवारि ||७० || इम कर्म तणई वसि जीव रोलव्यो, तुम्हे विचारी जोओ ! माणसनो भव वोहिलो, लाधो ते कां आली" खोओ ।।७१ ।। क्रोध मांन गाया मद छांडो, आणो मनि वइंराग । अंतरंग लोचन ऊघाडी, मुंको ममताराग ॥ ७२ ॥ ते गुणवंती आई गोरी, वरने बचने जागी। दोय कर जोडीनई ते आठई, कुमरनई पाए लागी ।।७३|| बलिहारी जाउं मोरी सासू, जिणइं जायो तुं पिउडा । संसार तणां दुख छोडो स्वामी, आपो शिवसुख रूयडा ||७४ १ प्रतिबोधाणी आउई राणी, जाणी कुमर कहई वात । तुम्हे सील साधुं अंगि आदरो, जिहां न मलई मुज सात | ७५ ॥ // ढाल || कुमर वइंरागिं पूरीओ, उठ्यो साहसधीरो रे । राजसभामाहिं गयो, प्रह उगमतइ वीरो रे ।। ७६ ।। ।। आंकणी । । माडि गनि आश्या धणी, पुत्र पालशई राजो रे । आठ बहू करशई सही, सासूडीनां काजो रे ।।७८ ।। For Private and Personal Use Only कुमर वइंरागई.... कुमर वइंरागई...

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