Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 82
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 80 JULY 2014 (४) आराधना भवन : आराधक यहाँ धर्माराधना कर सकें इसके लिए आराधना भवन का निर्माण किया गया है. प्राकृतिक हवा एवं रोशनी से भरपूर इस आराधना भवन में मुनि भगवंत स्थिरता कर अपनी संयम आराधना के साथ-साथ विशिष्ट ज्ञान भ्यास, ध्यान, स्वाध्याय आदि का योग प्राप्त करते हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५ ) धर्मशाला : इस तीर्थ में आनेवाले यात्रियों एवं महेमानों को ठहरने के लिए आधुनिक सुविधा संपन्न यात्रिकभवन एवं अतिथिभवन का निर्माण किया गया है. धर्मशाला में वातानुकुलित एवं सामान्य मिलकर ४६ कमरे उपलब्ध हैं. प्रकृति की गोद में शांत और सुरम्य वातावरण में इस तीर्थ का वर्ष भर में हजारों यात्री लाभ लेते हैं. (६) भोजनशाला व अल्पाहार गृह : तीर्थ में पधारनेवाले श्रावकों, दर्शनार्थियों, मुमुक्षुओं, विद्वानों एवं यात्रियों की सुविधा हेतु जैन सिद्धान्तों के अनुरूप सात्त्विक उपहार उपलब्ध कराने की विशाल भोजनशाला व अल्पाहार गृह में सुन्दर व्यवस्था है. - (७) श्रुत सरिता : इस बुक स्टाल में उचित मूल्य पर उत्कृष्ट जैन साहित्य, आराधना सामग्री, धार्मिक उपकरण, कैसेट्स एवं सी. डी. आदि उपलब्ध किये जाते हैं. यहीं पर एस. टी. डी टेलीफोन बूथ भी है. विश्वमैत्री धाम बोरीजतीर्थ, गांधीनगर : योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी महाराज की साधनास्थली बोरीजतीर्थ का पुनरुद्धार परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा एवं शुभाशीर्वाद से श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र संलग्न विश्वमैत्री धाम के तत्त्वावधान में नवनिर्मित १०८ फीट ऊँचे विशालतम महालय में ८१.२५ इंच के पद्मासनस्थ श्री वर्द्धमान स्वामी प्रभु प्रतिष्ठित किये गये हैं. ज्ञातव्य हो कि वर्तमान मन्दिर में इसी स्थान पर जमीन में से निकली भगवान महावीरस्वामी आदि प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज द्वारा हुई थी. नवीन मन्दिर स्थापत्य एवं शिल्प दोनों ही दृष्टि से दर्शनीय है. यहाँ पर महिमापुर (पश्चिमबंगाल) में जगत्शेठ श्री माणिकचंदजी द्वारा १८वीं सदी में कसौटी पथ्थर से निर्मित भव्य और ऐतिहासिक जिनालय का पुनरुद्धार किया गया है. वर्तमान में इसे जैनसंघ की ऐतिहासिक धरोहर माना जाता है. निस्संदेह इससे इस तीर्थ परिसर में पूर्व व पश्चिम भारत के जैनशिल्प का अभूतपूर्व संगम हुआ है. For Private and Personal Use Only

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