Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
जुलाई - २०१४ गरनारी सह लोमल्युं मनमोहन. आव्या राणाराप लाल मनमोहन । केवल महिगा सह करइं मनमोहन, दीठई आनंद थायई लाल गनमोहन ।।५५।।
इणई अवसरि पूछइं तिहां मनमोहन, सुधन सारथपति एम लाल भनमहन। तुम बिहुँ जण केवल तणो भनमोइन,
संबंध एक छई केम लाल मनमोहन ।।५६ ।। वलतुं भाखइं केवली मनमोहन, सुणि सारथपति धन्य लाल गनमोहन । अहो विहुं पूरवगविं मनगोहन, कीधा सरखा पुण्य लाल मनमोहन ।।५७ ।।
पुत्र पिता अहो हा मनमोहन, आठ आलए नारि लाल मनमोहन । सहु साथि संयम लीओ मनमोहन,
पाल्युं निरतीचार लाल मनमोहन ।।५८ ।। विहुं चारित्र आराधतां मनमोहन. कर्म कर्यां चकाचूर लाल मनमोहन। पोहुता सारशसिधि मनमोहन, सुख लाधा भरपूर लाल मनमोहन ।।५९ ।।
तिहां सागर तेत्रीरानुं मनमोहन, पूरण भोगवी आय लाल गनमोहा। गुणसागर व्यवहारीओ थयो मनमोहन,
हुं आधी हुओ राय लाल मनमोहन ।।६० ।। पूरव प्रेग तण: वरीि मनमोहन, आठ नारि संपत्त लाल मनमोहन । भोगकर्म नवि बांधीउं मनमोहन, शिणई हया टिषयविरत्त लाल मनमोहन ।।६१ ।।
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