Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
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जुलाई - २०१४ तीजो आश्र. अदत्तादान लागो हुवै। ते किम? पारकी वस्तु चौरी हुवै चौरावी हुबै चौरतों अणुगोदी हुदै । इणभव परभव जाणता अजाणतां ते मिच्छामि दुक्कडं ।।३॥
चौथो आश्रव मैथुन रोव्यो हुवै। ते किम? देवसंबंधी, मनुष्यसंबंधी, तिर्यंचसंबंधी रोव्यौ हुदै । आपणी पारकी स्त्री. आपणो पारको पुरुष तेहनी कायाने विषै लोलुपता कीधी हुवे। इणभव परभव जाणतां अजाणता ते मिच्छामे दुक्कडं ।।४।।
पांचमो आश्रय परिग्रह राख्यो हुवै। ते किम? ते कहै छै-चवदै उपगरण। कहया छै तेहथी अधिका राख्या हुवै अथवा पाछले भव अथवा गृहस्थावास वसतां धन्य-धान्य-क्षेत्र-वास्तु-रूप्य-सुवर्ण-कूप्य-द्विपद-चतुःपदादिक नवविध परिग्रह अपरमित राख्या हुवै ते ऊपर घणी मूर्छा कीधी। इणभव परभव जाणतां अजाणतां मिच्छामि दुक्कडं ।।५।। वली क्रोध' मान' गाया' लोभ घणा कीधा हुवै।
चली राग धणौ कीधौ हुवै ते राग त्रिहुं भेदें। ते किम? स्त्रीने पुरष उपर राग, पुरषने स्त्री उपर राग. पुरषने पुरष ऊपर राग. (स्त्रीने स्त्री उपर राग.) ते कागराग कुटुंब परेवार ऊपर राग ते सनेहराग आपणे मति ऊपर कदाग्रह ते दृष्टिराग 1|१०||
इम द्वेषना पिण त्रिण भेद ||११|| वले लोकासु वेढवाड कीधा हुयै ।।१२।। वले लोकांने कूडा कलंक दीधा हुवै ।।१३।। वले छत्ता अछता दूषण प्रकासने पारकी निंदा कीची हुयै ।।१४।।
वली दुःख पामीने आकुलव्याकुलता कर अरइ वेई हुवै अनै सुख पामीने रइ वेई हुवै ।।१५।।
क्ली पैशून्य कीधौ हुवे, राजा हजूर चाडी खाधी हुवै, केहनै दंडाया मुंडाया हुचै ।।१६।।
वली माया राहित मृषावाद बोल्यो हुयै अथवा धापणि मोसो कीधो हुवै 11१७।।
वली महामाई, चामुंडा, चौसठी, नगरकोटी, गौरदेवी प्रमुखः वली यक्ष, गोगा, क्षेत्रपाल, विनायक, पश्चिमाधीश, हरिहर प्रमुख कुदेवने देव मान्या हुवै। वली जोगी, सन्यासी, कडी, कापडी, तापस, दरवेस, शेष मुल्ला, मुंडिया, सोफी, आचारभ्रष्ट पासत्थ ओसन्ना प्रमुख कुगुरु ने गुरुबु माया हुवै । वली मिथ्यात्वी
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