Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 64
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR JULY - 2014 तत्रादौ आराधनाविधिः प्रोच्यते-तथाहि शुगसौग्यवारे शुभवेलायां भोजनानन्तरं देहं शुचिं कृत्वा सर्वसङ्घमाकार्य अग्रस्थापितश्रीवीतरागप्रतिम या अग्रे सम्मुखीभूय ईर्यापथिकी प्रतिक्रम्य चैत्यवन्दनां कृत्वा मुखवस्त्रिका प्रतिलेख्य वन्दनकद्वयं दत्त्वा आराधनाकृद् भणति ‘भगवन्! आराधनासूत्र सुणावौ। गुरूर्भणति - विधिपूर्वक सांभलौ। तथाहि अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो। जिणपन्नत्तं तत्तं, इय सम्मत्तं मए गहियं ||१|| देव तौ श्रीवीतरागदेव अढारै दूषणें करी रहित, देवतां कोडि तिणे महित, चौतीस अतिसय विराजमान, पैंतीस वाणीगुणकरी सौभित, आठ महाप्रातिहार्य तिणे करी युक्त, अनन्तगुणनिधान, सर्व देवमांहे प्रधान, देवाधिदेव ते माहरे देव एहवो सरदहज्यौ (१) गुक्त तो सुसाधु जे पंचमहाव्रतरा धरणहार, बयालीस आहार दूषणना टालनहार, छजीवनिकायना पीडाहर, अढारै सहस्र शीलांगरथना धारक, संसारसमुद्रतारक, पांचे सुमिते सुमिता, त्रिहुं गुप्ते गुप्ता, ज्ञानदर्शनचरित्रकरि मोक्षमार्गसाधक, वीतरा देवनी आज्ञारा आराधिक, क्रियाकलापसावधान, सदा धर्मध्यानकुक्षीसंबल, चरित्रपात्र, निर्मलगात्र एहवा साधु भगवंत माहरे गुरु एहवो सरदहिज्यौ (२) धर्म तो श्रीकेवलीभगवंतनो भाख्यो आज्ञारूप, दयामयी, दुर्गति पडतां प्राणीयांने धारे, जे करै ते संसार समुद्रने तरै एहवो टोतरागदेवनो धर्म ते माहरे धर्म (३) इतनें सुध समकित तुमनें उचरायो ।1911 हिवै अढारै पापरथानक कहै छै ते सांभलीने सरदहिज्योआसवकसायबंधणकलहाभक्खाणपरपरीवाओ। अरइरइपेसुन्नं मायामोसं च मिच्छत्तं ||१|| पांचे आश्रव वारंवार सेव्या हुवै। तिहां पहिलो आश्रय प्राणातिपात कीधो हुवै। ते किम? पृथवी' अपर तेउ' वाउ वनस्पति' बेंद्री तेंद्री' चौरेंद्री' पचेंद्री ए नवविधि जीव अभिहया वत्तिया इत्यादि दशप्रकारे करी इणभ परभ3 जाणतां अजाणतां मनवचनकायायै करी दुहव्या हुवै (दुहाव्या हुवे) दुहवतां अनुमोद्या हुवै ते अरिहंतनी साखि सिद्धनी साखि' देवनी साखिं' आत्मनि साखि गुरुनी साखि मिच्छामि दुक्कडं ।।१।। बीजौ आश्रव मृषावाद बोल्यौ हुदै । ते किम? हासें करी, क्रोधे करी, माने करी, मायाए करी, लोभे करी बोल्यौ हुवै । वलै कन्यालीक' गवालीको भौमालीक थापणमोसो कीधो हुवै। कुडी साख दीधी हुवै। इणभव परभव जाणतां अजाणतां ते मिच्छामि दुक्कडं ।।२।। For Private and Personal Use Only

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