Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 69 जुलाई २०१४ विछू, प्रमुख दुहच्या हुवै। इत्यादिकै करी चौरेंद्री जीव विराध्या हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजागतां ) ते मिच्छामि दुक्कडं ||८|| - हिवै पचेंद्री जीव विराध्या हुवै। ते किम ? कूता, बिल्ली, गाय, भैंस, घोडा, उंट (ऊंट), प्रमुखनौ घा ( डउ ) उ प्रहार घाल्यौ हुवै। चिड़कला, काग, पारेवा प्रमुख उडाया, बीहाव्या, त्रासव्या हुवै । एहना गाला पाड्या हुवै। साप अजगर उलारी नांख्या हुदै । रूपा, चिडी, हिरण प्रमुख डावा जीमणा आण्या हुवै। ऊंट, घोडा, बलद, खर, हाथी ऊपर चढ्या हुवै। मांदा असकत थकां अथवा इयां उंठ (ऊंट) प्रमुख ऊपर उपगरण पोथी प्रमुख भार घाल्या हुवै। ओषध देइ गर्भ पाड्या हुवै। मूत्र, विष्टा, श्लेषम, वात, पित्त, रूधिर, वीर्य, प्रमुख अंतर्मुहूर्त मांहे वोसराव्या नहीं हुवै। असंख्यात समूर्च्छिग पंचेंद्री जीव अपर्याप्ता ऊपना हुवै। क्रोधें करी चेला गुरुभाई अनेरा यती, गृहस्थनें चुंहटी, डोरा बूस्ट, टुबो, चपेट, डांडा मार्या हुवै। वली इर्या सोझो नहीं हुवै । राति चाल्या हुवै। पच्चखांण करी सुंस लेइ भांग्या हुवै | आरंभ - समारंभ करी प्राणातपात करी पहिलो व्रत विराध्यो हुवै। इणभव परगव जातां (जाणतां अजाणतां ) ते मिच्छामि दुक्कडं ||१|| हिवै बीजो व्रत विराध्यौ हुवै। ते किम ? क्रोध, मान, माया, लोभ, भय, हास्थ, रति, अरति, करी: मृषा भाषा करी सावद्य भाषा बोली हुवै। पारकी निंदा कीधी हुवै । उत्सूत्र वांल्या हुवै। तूं जाव तूं आद ए काम करि इत्यादि अवधारणी भाषा बोली हुवै। आंधाने आंघो कहयो, कांणानें कांणो कहयो, कोढीयाने कोढीयो कहै. देवालीयाने देवालीयो, चोरनै चोर, जारने जार, इत्यादि वचने करी परनै असाता ऊपजावी ते साची भाषा पिण चोली हुवै। वली मृग गया पूर्व दिस, आहेडी पूछयां कह्यो 'पश्चिम दिस गया । मलेछादिक देहरो उपासरो पाडिवा आवै छै, यतीने मारवा आवे छे, पूछे 'अटै देहरो उपासरो जती छे? ति वारै कहै 'नही छै' एहवे कारण ए जूठ बोल्यो हुवै। इत्यादि प्रकारै करी बोजो व्रत विराध्यो हुवै इणभव परभव जातां( जाणतां अजाणतां ) ते मिच्छामि दुक्कडं ॥२॥ For Private and Personal Use Only हिवै तीज व्रत विराध्यो हुवै। ते किम ? स्वामिअदत्त' जीवअदत्त' तीर्थंकरअदत्तः स्वकीयगुरु अदत्त ए चतुर्विधि अदत्त लीधों हुवै। त्रिण, छार, डगल, पाषाण, थंडिला भूमि 'अणुजाणइ जररावग्गहो होत्ति' एहवुं वचन कह्यां विना संग्रहा हुवै। साधु-साधवी - गृहस्थना राछ, पीछ, पातरा, लूगडा पाटि, पाटला, अन्न, पाणी, ओषध प्रमुख अणकहयां वपराया हुवै। इत्यादिक प्रकारै त्रीजो व्रत विराध्यौ हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां ) ते मिच्छामि दुक्कडं ||३||

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84