Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 61 जुलाई - २०१४ ४) संयमनी विराधनानु मिच्छामि दुक्कडं : आ अधिकारमा पांच महाव्रत अने छट्ठां रात्रिभोजनविरमणव्रतनी विराधनानं विस्तारथी वर्णन छे. ५) दुष्कृतनी गर्दा : पांचमां अधिकारमा भिक्षाना ४२ दोष, पांच आहारना दोष, साध्वाचारना अतिचार, पंचाचारनी विराधना, १० प्रकारना यतिधर्मनी विराधना, धरणसित्तरी अने करणसित्तरीनी विराधना वगेरे दुष्कृत्योनी गर्दा करावे छे. ६) सुकृतनी अनुमोदना : जीवनमां करेलां सुकृत याद करावे छे. पांच महाव्रतोनो रवीकार कर्चा, अष्टप्रवचनमाता- पालन कर्यु, अ गमशास्त्रोनो अभ्यास कों-कराग्यो, शास्त्र लख्यां, शुद्ध कर्या, बीजाने वांचवा प्रत आपी, अरिहंतनी, साधुनी, ग्लाननी, तपस्वीनी, गुरुनी, वाचनाचार्यनी वैयावञ्च करी, योग वहन कर्या, तीर्थयात्राओ करी, अनेक प्रकारनां तप कर्या, कारस्सग्ग कर्या, भावना भावी, नवकार गण्या, चरणसित्तरी अने करणसित्तरी सारी रीते पाळी, आ बधा सुकृतोनी अनुमोदना शुरु करावे. ते पछी विशेष रूपे पच्चवरखाण. आपे. अभिग्रह आपे, चार शरणनो स्वीकार करावे. आ रीते अंतिम समयनी आराधना गुरु संभळावे छे. कृतिनो रचनासंवत वि. सं. १६६८५ छे. आ कृतिनी एकमात्र प्रत प्राप्त थइ छे. ते कया भंडारनी छ, तनी खबर नथी. प्रतनी लंबाइ २२.५ से.मी. अने पहोळाइ १२ से.मी. दरेक पत्र पर १४ पंक्ति छे. अने दरेक पंक्तिमा ३९ अक्षर छे. तेनो लेखनसगय संवत् १८५९ पोष वद-३ सोमवार छे. आ प्रत पं. दुलीचंदे विक्रमपुरमां लखी छे. प्रत घणे भागे शुद्ध छे. तेनी पहेली प्रतिलिपि अगृतभाई पटेले करी छे. प्रतनी भाषा जून राजस्थानी छे. मोटे भागे समजी शकाय तेची छे. अशुद्ध पाठने संपादन समये सुधारी लेवामां आव्यां छे. अस्पष्ट पाठनी सामे(?) चिन दर्शाव्यु छे. अधूरा पाठने पूरा करी पादटीपमा दर्शाव्या छे. एकंदरे आ कृति अंतिम आराधनामां खूब सहायक बने तेवी छे. सामवार छ. यतिअंतिमआराधना स्वस्तिकल्याणकर्तारं नत्वा श्रीशीतलं जिनम। अहमाराधनां वधि यति(ती)नामात्मशुद्धये ।। तत्रास्यां यत्याराधनायां षडधिकारा ज्ञेयाः। तथाहि - (१) पूर्वं सम्यक्त्वशुद्धिः (२) ततोऽष्टादशपापस्थानकपरिहारः (३) ततः चतुरशीतिलक्षजीवयोनिक्षामणम् (४) संयमविराधनाया दुष्कृतदानं (५) ततो दुष्कृतगर्हा (६) ततः सुकृतानुमोदना । For Private and Personal Use Only

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