Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री जिनप्रभसूरिकृत फारसी भाषामां ऋषभदेव स्तवन श्री जिनविजयजी आ नीचे आपेलुं स्तवन जैन साहित्यमां एक नवी वस्तु छे. जैन ग्रंथकारोए भारतवर्षनी संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, गुजराती, पंजाबी, कानडी, तामिळ, तेलुगु वगेरे आर्य अने द्रवेडीय भाषाओमांनी घणीक भाषाओ मां पोतानी अनेक कृतिओ करेली छे ते तो सुविदत ज छे, पण फारसी जेवी म्लेच्छोनी भाषायां पण जैनाचार्योए कांइ रचना करी हशे एनी कल्पना भने आ स्तवन जोयां पहेलां थइ शके तेम न हती. जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरिना शिष्यो अकबर बादशाहना दरवारमां विशेषपणे रह्या हता तेथी तेमने बादशाहातनी राजभाषानो सारो परिचय थयो होवो जोइए ए देखीतुं छे अने तेना पुरावाओ पण तपास करतां मळी आहे तेम छे. भक्तामर स्तवननी टीकामां के बीजे क्यांए मारा बांचवामां आवेलुं छे के सिद्धिचंद्र पंडित फारसी भाषा जाणता हता. पण ए विद्वाने फारसी भाषामां कांइ रचना पण करी हती के केम तेनो पुरावो अद्यापि मारी जाणगां आव्यो नथी. पण प्रस्तुत स्तवन तो एकरी घणुं जूनुं कहेवाय. कारण के आना कर्ता श्रीजिनप्रभसूरि १४ मा सैकामां थएला . तेओ अलाउद्दीनना जमानाना छे. दिल्ली अने तेना असपासना प्रदेशोमां ते घणो समय वित्रर्या होय एम तेमना रांधे मळी आवती हकीकत उपरथी समजाय छे. अला उद् दीन पछी दिल्लीनी गादिए आवनार महमूदशाह बादशाहना दरवारमा ते सूरिव जता आवता हता अने ए बादशाहने पोतानी चमत्कृतिओ बतावी एनी जैन धर्म तरफ कांईक सहानुभूति मेळवी, मुसलमानोना हाथे थता जैन मंदिरोना नाशने केटलेक अंशे अटकाववागां तेमणे सफळता मेळवी हती. आ विगत जोतां, नेमने फारसी भाषानो परिचय थाय अने तेमां कुतुहलनी खातरी आवी प्रभुस्तुति बनाववा प्रेराय ते प्रसंगप्राप्त छे. जिनप्रभसूरि समर्थ विद्वान् हता ए वात तो तेमना बनावेला विविधतीर्थकल्प, विधिप्रपा, संदेह विषौषधी, स्मरणटीका वगेरे जे केटलाक ग्रंथो मळी आवे छे ते उपरथी जणाइ आवे छे. ए ग्रंथो उपरांत, संस्कृत प्राकृत भाषामां तेमणे अनेक स्तुति स्तोत्रो रवेलां छे, जेओमांनां केटलांक प्रकट थएला अने केटलांक अप्रगट रहेलां दृष्टिगोचर थाय छे. एम संभळाय छे के जिनप्रभसूरिने प्रभुस्तुतिओ रचवानो एक प्रकारनो जाणे नियम ज होय के प्रति दिवस तेओ कोई न कोइ नानी मोटी प्रभुस्तुतिनी For Private and Personal Use Only

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