Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 41 जुलाई २०१४ कागज, कपडा, कलम आदि ग्रंथ लेखन सामग्री एकत्रित करना इतना सरल नहीं था । अर्थात् साधन-सामग्री का बहुत अभाव था । आज भी श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोवा के आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ग्रंथागार में ऐसे अनेकों ग्रंथ-लिपिबद्ध प्राचीन ताडपत्रीय ग्रंथ विद्यमान हैं जिनके अक्षरों में स्याही नहीं भरी है, लेकिन उन्हें पढा जा सकता है । विदित हो कि तत्कालीन स्याही अथवा विविध रंग आदि बनाने के लिए प्राकृतिक वस्तुओं जैसे भांगुरा, गोंद, लोह, विविध वृक्षों की छाल, पुष्प, पत्ती, गुठली आदि क स्तेमाल किया जाता था। जिसके कारण ये रंग अथवा स्याही चिरकाल पर्यन्त स्थाई रह सकें। इसका प्रमाण हमारे ग्रन्थागारों में विद्यमान प्राचीन पाण्डुलिपियों को देखने मात्र से मिल जाता है। विविध प्राचीन ग्रंथों में स्याही, ताडपत्र, कागज आदि लेखन सामग्री तैयार करने विषयक उल्लेख भी मिलते हैं। जिनमें काला भांगुरा तथा बबूल के गोंद का वर्णन करते हुए तो यहाँ तक कहा गया है कि- 'गोंद संग जो रंग भांगुरा मिले तो अक्षरे अक्षरे दीप जले'। आज भी इस बात के पूर्णतः स्पष्ट साक्ष्य विद्यमान हैं। हमारे ग्रंथागारों में ऐसे अनेकों ग्रंथ संगृहीत हैं जिनका आधार (कागज या ताडपत्र) पीला पड़ गया है अथवा पूर्णतः जीर्ण हो चुका है लेकिन उस पर उत्कीर्ण अक्षरों की स्याही आज भी चमकती हुई दिखाई पड़ती है। ऐसा लगता है मानो कि प्रत्येक अक्षर दीपक की तरह चमक रहा हो । ग्रंथ-लिपिबद्ध ताडपत्रों की एक खासियत यह है कि, यदि इन ग्रंथों पर लंबे समय से बेदरकारी के कारण अत्यन्त धूल-मिट्टी अथवा कालिख जमा हो गई हो तो इन्हें पानी से धोया भी जा सकता है। विदित हो कि ऐसा करने से लिखे हुए अक्षरों को किसी प्रकार की हानि नहीं होती है। लेकिन ऐसा करते समय पाण्डुलिपि विशेषज्ञों का मार्गदर्शन लेना चाहिए। क्योकि इस प्रक्रिया में विशेष ध्यान रखना होता है कि उन पत्रों को धोने के बाद सुखाने के लिए आवश्यकतानुसार योग्य ताप एवं नमी प्रदान किया जाये । अस्तु प्राचीन भारतीय इतिहास एवं सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण, संपादन एवं पुनः लेखन में ग्रंथ - लिपिबद्ध साहित्य की अहम भूमिका रही है। इस लिपि में लिखित सामग्री मूल पाठ के निर्धारण एवं कर्तुः अभिप्रेत शुद्ध आशय तक पहुँचने में प्रामाणिक और महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत् करती है। इसके नामकरण एवं उद्भव और विकास विषयक विविध अवधारणाएँ निम्नवत् है For Private and Personal Use Only

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