Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
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JULY - 2014 गाथार्थ :- हे स्वामेन! अगारी सेवा-भक्ति तरफ जरा-तरा पण जो अने मास, दिवस, रात्री के छेवटे एक प्रहर पण आवीने अमारा देलमां निवास कर.
तुं मादर तुं फिदर बुध तुं ब्रादर तुं आम्। नेसि विहेलिय तइं अवरि बीजे मोरइ कामु ।।४।।
संस्कृत व्याख्या :- त्वं.... माता त्वं विमुच्य अपरेण बीजे किगपि मम कार्य नेमि नास्तीत्यर्थः।
गाथार्थ :- हे प्रभु! तूं ज मारी माता, मारो पिता आने गाइ छे. तने छोडीने बीजा कोईनी साथे मारे कशु काम नथी.
महमद मालिम मंतरा ईब्राहिम रहमाणु। इंहं तुरा कुताबीआ मेदिहि मुक्यल्फरमाणु ।।५।।
संस्कृत व्याख्या :- त्वं महमदो विष्णुः, इब्राहिमो ब्रह्म., रहमानो महेश्वरः त्वमेव । अथ रहत्यागे इति चौरादिको विकल्पे सो धातुः । रहति रागद्वेषो त्यजतीत्येवं शक्तः । शक्तिवयरताच्छील्ये इति शान। आन्गोत आने मोतः णत्चे कृते रहगाण इति रूपं । सर्वेपि देवार वमेव । मालिगः पंडितो गग त्वं । एषोऽ, तुरा तव कुताबीआ लेखशालिकः । मे मेदिहि मग फुरमाण आदेशं देही, किंकर-वाणि अहं! पंडितो हि शिष्यस्यादेश ददातीति भावः ।
गाथार्थ :- हे प्रभु! तुं ज महमूद-विष्णु छे, तुंज इब्राहीम-ब्रहाा छे अने तुं ज रहेमान-महेश्वर छे. सर्व देव ते तुंज छे. तुं ज पंडित छे. अने हुँ तारो लहीओ छु. तेथी तुं गने तारुं फरमान लखवा आप.
फरमूद तुरा जु मेकुनइ मेचीनइ न सुधंग। खोसु शलामय आदतनु अर्जदि छोडिय यंग ।।६।।
संस्कृत व्याख्या :- फरमूद तुरा तव आदिष्टं यो मेकुनइ करोति, सधंग दुःखानि न मेचीनइ न चुंटयेत्। खोसं सुखं, शलामथ कुशलं, आदत साहायं, नु नव्यं, अजदि लभते । कथंभूतः छोडिययंगः मुक्तकलह इति संबोधनं गतद्वेष इति भावः ।
गाथार्थ :- दुनियाना जंग-झगडाथी पर थयेला हे मालिक! जे तारा फरमान प्रमाणे नथी वर्ततो ते दुःखोमांथी छूटवानो नथी अने सुख, सौभाग्य, अने सहायता मेळववानो नथी.
सादि न खस्मि नवा अगर तं कुय तुरा सलासु। बंदि पलात सु मे दिहइ वासइ न हर हरामु ।७।।
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