Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यतः www.kobatirth.org श्रुतसागर 23 अबला आठ कन्या सुकुमाल, अमरी सरखी कुमरी बाल । अबोल्या परणो तुझे पूत, तु सारू छई अह्म घर सूत ||१०|| तव कुंयर पगि लागी भई, निसुणो वीनती आदर घणई । ए संसार असार अपार, सगपण हूयां अनंतीवार ||9|| जिम जिम व्याप कुंटंबनो थाई, तिम तिम जीव नरगमां जाई । देवलोकि चली हूओ देव एकेंद्री थाथ ततखेव || १२ | · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वली वनस[प] तिगाहिं भग्यो, दुःख अनंत तिहां पणि खम्यो । इम योनि लाखचोरासीमाहिं जीवनई उपजवानी आहि ।।१३।। जुलाई २०१४ जिम नाटकीओ नाटिक करइं, नव नव वेष करंतु फरई । जीव करई तिम नव नव वेस, फरसई चउदराज परदेस ||१४|| न सा जाईन सा जोणी, न तं ठाणं न तं कुलं । न जाया न गया जत्थ, सव्वे जीवा अणंतसो ||१६|| आगई मई कीधा संभोग, परणी मेल्या कुटंब संयोग । गातपिता पुत्रादिक तणा, संबंध कीधा छइं अति घणा ||१५|| जे कन्या गुझ पर णावरयो, तेहनी कूखि हुं बहु वशो । जिनवर वचने ईम जाणीइं ते कन्या किम घरि आर्ण इं । ११७ ।। तुं डाही माता सुणि मर्म, यो आदेश करुं जिम धर्म । खिण एक रहवुं न खमई हवई करो पसाय मोरई मनि गमइ ||१७|| वच्छ ! दसमासमई उअरिं धार्यो, पाली पोसी मोटो कर्यो । माहरई गनि छई ए उच्छाह, माहिरइं" बइंसी करो विवाह ||१९|| पूरि मनोरथ हवई मायनो, तुं सपुत्र भगतो उपनो । कयुं जो मानिसि जो गाहरु, तो हुं नवो दावो" नहि करु ||२०|| मात तणुं हवई वचन प्रमाण, करई कुमर अवसर नो जाण । संतोषाणो सहु परिवार, करई सवे ते जय जयकार 129/1 For Private and Personal Use Only रासरानई कहवराव्युं वही परणी चारित्र लेस्युं सही । तव ते आठ विचारइं मली, वर बीजो जोस्युं मनरली ||२२|| २

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