Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 24 बोलई कुमरी तव उडवडी वर अवर वरवा आखडी । एहवो निश्चय जाप्यो यदा, लेई लगन सहुं वलीओ तदा ।। २३ ।। हवई मोटा मांड्या मांडवा, बांध्या चंदरूआ नव-नवा । टोले टोले करती गांन, नारि मली केलवई पकवान ।। २४ ।। JULY 2014 खाजां चुरमा सेव-लाडूया, गल्या गांठीया नही पाडूया" । मांडी मरकी मोदक जाति, झीणा फीणा दीधी पाति ।। २५ ।। भली जलेबी घेवर घणा, मेवानी पणि६ नही तिहां मणा । खजूर खलहलां खारिकि द्राख, नीमजां पस्तांनी कुण भाख ||२६|| चारोली चारबी अखोड, खातां पोहचई मनना कोड । बदाम गोटा मोटा वली, साकर दूधमाहिं तिहां भली ।। २७ ।। पापड पापडी अनई वडी वडां, शालि दालि धृत धोलपडवडां । स्वजन जम्या दिधा तंबोल, कर्या छांटणा अतिरंगरोल ।।२८ || गुणसागर वर तव संचर्या, माथइं गुगट मनोहर भर्या । विविध कुसम टोडर" उरि हार, पहर्या अवर सवे शणगार ।। २९ ।। वरघोडइं सोहइं अतिभलो, वइरागी कुंअर गुणनिलो । अनुक्रम पोहतो ते 'रण बारि, जई वइंठो मांडवा मझार ||३०|| सवि शणगार तणी ओरडी, हरखी ते आवई गोरडी । कंत तणो कर झाली रही, हवई न जावा देसुं सही ||३१|| गुणसागर थई बइंटो धीर, भावई भावना एहवी वीर । जीव एकलो छई संसारि, को कहई नो नथी निरधारी ।। ३२ ।। सुख विहचवा मलई सहु कोई दुख विहचवा न आई दोय । सगासणीजा अनई कलत्र, मातपितानई वाहला पुत्र ||३३|| स्त्री कखि लीउं निःसंचल्यु, देखी नमि राजा एकलुं । प्रतिबोधाणो सुखीओ थयो, जीव एकलो ते गुगतिं गयो ||३४|| इम चीतवतो भाव चढ्यो, मोह मदन साथि अतिवढ्यो । पाप पखाल्यां समतानीर, जीत्या कर्म महाभडवीर ||३५| For Private and Personal Use Only उपनुं केवल झाकलमाल, सुर हरख्या आव्या ततकाल । कंचनकमल रची पाइं नमई, देवदुंदुभी वाजई तिणई समई | | ३६ ||

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