Book Title: Shrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
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JULY-2014 आंसू पाडइं दुःख धरइं, वली करई विलापो रे। तुं निसनेहो को थयो, कुण कीधां मई पापो रे ।।७९ ।
कुमर वइंरागई... वली वली माडी इम भणइं. वछ तुझ नवली वेसो रे। सकलकला गुण तं, भों, कीम दीजई आदेसो रे ।।८।।
कुमर वइंरागई... ताहरइं आठ अंतेहरी, सरखी राजकुमारों रे। विषय तणां सुख भोगवो, विषमो विषय विकारो रे ।।८१।।
कुमर वइंरागई... वछ! ए राज तुह्यारडु, अह्मे हुया व्रतयोगो रे। अवली गति तुह्मो का करो. ल्यो ए राज्यनो भोगो रे ८२।।
कुमर वइंरागइं... एणी परि मातपिता तणां, निसुणी वयण अगेको रे। नीरागी ते नवि दीइं, वलतो ऊत्तर एको रे ||८३।।
कुमर वइंरागई... इणई अवसरि नृप हार] खिओ, उलट अंगि न मायो रे। जोरइं पणि अणवांछतो, पृथिवीचंद्र को रायो रे ।।८।।
कुमर वइंरागई... राज देईनइं कुमरनइं, पहराव्या सणगारो रे। मरतकि मुकुट सोहामणो, उरवरि नवसर हारो रे ||८५।।
__कुमर पइंरागई... राजकुली सघली भली, प्रणमई राणा रायो रे। जय जयकार सह करई, माथइं छत्र धरायो रे ||८६ ।।
कुमर वइंरागई... मादल भुंगल भेरि-नफेरी, वाजइं ढोल नीसाणो रे। नगरमाहिं सघलई वरतावी, पृथवीचंद्रनी आणो रे ।।८७ !!
कुमर वइंरागई...
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