Book Title: Shravak Ke Barah Vrat Author(s): Mangla Choradiya Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal View full book textPage 8
________________ परपासंड पसंसा- मिथ्या दृष्टि की प्रभावना देखकर उसको। प्रशंसा करना। परपासंड संथवो- मिथ्या दृष्टियों का संसर्ग-परिचय अधिक रखना। आगार लौकिक व्यवहार से, कुलाचार से, परम्परा से, राजाज्ञा के कारण से, जाति आदि के कारण से, बलशाली द्वारा विवश किए जाने पर मातापितादि पूज्य पुरुषों के आग्रह से, अटवी के कारण से, काल दुष्काल के कारण से, मिथ्यात्वी को मान सम्मान देना पड़े अथवा अन्य किसी दुःखी की अनुकम्पा से, धर्म दिपाने के कार्य में तथा संघ का कष्ट मिटाने में दान मान देना पड़े तो मुझे इसका आगार है। सम्यक्त्व का फल सम्यक्त्व भाव में रहते हुए आत्मा नरक, तिर्यंच, भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी देव की आयुष्य तथा स्त्रीवेद व नपुंसकवेद इन सात बोलों का बंध नहीं करता। बारह व्रतधारी श्रावक कम से कम पहले देवलोक और अधिक से अधिक बारह वें देवलोक तक जाता है। यदि श्रावकपने में आयुष्य का बंध हो तो यह आराधक अधिक से अधिक 15 भव में अवश्य मोक्ष जाता है। आराधक के 22 दंडक पर ताला लग जाता है। मनुष्य गति व वैमानिक देव के अतिरिक्त वह कहीं भी नहीं जाता। भवसागर के किनारे लग जाता है।Page Navigation
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