Book Title: Shravak Ke Barah Vrat
Author(s): Mangla Choradiya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 28
________________ 17. विकार दृष्टि से 'स्त्री' को परपुरुष के और 'पुरुष' को परस्त्री के अंगोपांग नहीं देखना चाहिए। 8. बिना काम रात्रि में या असमय में जहाँ-तहाँ नहीं भटकना चाहिए। 9. पुरुष को स्त्री समूह में और स्त्रियों को पुरुष समूह में विशेष कारण बिना नहीं बैठना चाहिए। 10. जहाँ स्त्री पुरुषों का संघर्षण (शरीर स्पर्श ) होता हो, ऐसे मेलों में नहीं जाना चाहिए। 11. विषय लालसा बढ़ाने वाले नाटक आदि नहीं देखना चाहिए। 12. विकार को उत्पन्न करने वाले वस्त्र आभूषण नहीं पहनने चाहिए। 13. शृङ्गार रस के गायन नहीं गाने चाहिए। 14. कामविकार उत्पन्न करने वाले स्त्री/पुरुष के चित्र अपने मकान में नहीं रखने चाहिए। 15. स्त्रियों/पुरुषों में राग बढ़ाने वाली कथा वार्ता नहीं करनी चाहिए। 16. शीलव्रत के नियम वाले को अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या आदि दिनों में अपनी सोने की शय्या दूर रखना चाहिए क्योंकि निमित्त मिलने पर व्रत भंग का पूरा भय रहता है तथा नियम वाले दिनों में विषय वर्द्धक भोजन नहीं करना चाहिए। 17. एक बार मैथुन सेवन करने से समूर्छिम जीवों के साथ नौ लाख संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्यों तक की भी घात हो सकती है। अतः जितना त्याग किया जाय, वही श्रेष्ठ है। 18. गेम्स-रिसोर्टस, स्वीमिंग क्लब आदि जहाँ स्त्री पुरुष के एक साथ खेल, स्नानादि होते हैं, वहाँ नहीं जाना चाहिए। 19. टेलिफोन पर अश्लील चर्चा नहीं करनी चाहिए। 20. विवाह से पूर्व विशेष परिचय, साथ घूमना, टेलीफोन आदि से बचना चाहिए। 25

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