Book Title: Shravak Ke Barah Vrat
Author(s): Mangla Choradiya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ 13. मोहरिए-वाचालता से असत्य और ऊटपटाँग वचन बोलना। 4. संजुत्ताहिगरणे-हिंसाकारी औजारों को निष्प्रयोजन अथवा प्रयोजन से अधिक संग्रह करना। 5. उवभोगपरिभोगाइरित्ते-उपभोग परिभोग में आने वाली वस्तुओं पर अति आसक्ति भाव रखना एवं अधिक संग्रह करना। अनर्थदण्ड विरमण व्रत के नियम 1. मैं निष्प्रयोजन जमीन नहीं खोदूंगा/खोदूँगी, पानी नहीं गिराऊँगा/ गिराऊँगी। आग नहीं जलाऊँगा/जलाऊँगी, वनस्पति का छेदन भेदन नहीं करूँगा/करूँगी। 2. मैं पर्व दिनों में और विवाहादि में आतिशबाजी न छोडूंगा/छोईंगी न छुड़ाऊँगा/छुड़ाऊँगी। 3. मैं धर्म, तपस्या का निदान नहीं करूँगा/करूँगी। 4. मैं होली, नहीं खेलूंगा/खेलूँगी और न जलाऊँगा/जलाऊँगी। 5. दीक्षार्थी को अंतराय नहीं दूंगा/दूंगी। 6. मैं पक्षियों के घोंसले, चूहों व चीटियों आदि के बिल तथा मधुमक्खियों के छत्ते आदि नहीं तुड़वाउँगा/तुड़वाउँगी। 7. मैं जुआँ, रेसा आदि नहीं खेलूंगा/खेलूँगी। 8. शौक के लिए ऊँट, घोड़े, हाथी आदि जानवरों की सवारी नहीं करूँगा/करूँगी। 9. किसी को दुःख पहुँचे, ऐसी मजाक नहीं करूंगा/करूँगी। 10. पतंग नहीं उड़ाऊँगा/उड़ाऊँगी।। 11. देखे बिना कोई वस्तु काम में नहीं लाऊँगा/लाऊँगी। 12. भण्डोपकरण वस्त्रादि को इधर उधर खुले बिखेरकर नहीं रखूगा/ रखूगी। 46

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70