Book Title: Shravak Ke Barah Vrat
Author(s): Mangla Choradiya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 63
________________ 2. गुरु महाराज को अपने घर आते देखकर, सात-आठ कदम सामने जाऊँगा/जाऊँगी तथा वापस पधारते समय सात-आठ कदम छोड़ने जाऊँगा/जाऊँगी एवं पुनः पधारने की भावना भाऊँगा / भाऊँगी 3. भोजन करते समय अतिथि सत्कार की भावना भाऊँगा / भाऊँगी। 4. कोई वस्तु बहराने के बाद कम हो गई हो तो पुनः नहीं बनाऊँगा / बनाऊँगी। 5. खरीदकर, लाकर नहीं बहराऊँगा / बहराऊँगी और सामने ले जाकर नहीं बहराऊँगा 6. दवाई खरीद कर लानी पड़े तो उसका आगार है, मगर बाद में उसका प्रायश्चित्त लेऊँगा / लेऊँगी । 7. प्रासुक, निर्दोष आहारादि द्रव्य देने की ही भावना रखूँगा/रखूँगी। 8. यदि बहराते समय असूझता हो जावे तो उस रोज के लिए अपनी प्रिय वस्तु में से एक वस्तु के सेवन का त्याग कर दूँगा / दूँगी । 9. सुपात्र दान की भावना भाऊँगा / भाऊँगी। 10. साधु-साध्वी को निर्दोष आहार, पानी, वस्त्र, पात्र आदि बहराने की भावना भाऊँगा/भाऊँगी। 11. अवसर मिलने पर अपने हाथ से लाभ लूँगा / लूँगी । 12. हमेशा भोजन के पहले भिक्षा के समय दरवाजा खुला रख कर, सूझता होकर सूझती वस्तु से भावना भायेंगे। 13. धर्म में शिथिलाचारियों की निन्दा, अपमान, ईर्ष्या द्वेष आदि नहीं करूँगा /करूँगी। शिथिलाचारी प्रवृत्तियों में सहयोग व प्रोत्साहन देकर भगवान महावीर का गुनाहगार नहीं बनूँगा / बनूँगी । 14. धर्म के नाम पर आडम्बर होता हो वहाँ चन्दा नहीं दूँगा / दूँगी । 15. किसी की गलती से घर असूझता हो जाने पर कषाय नहीं करूँगा/ करूँगी, विवेक बढ़ाऊँगा / बढ़ाऊँगी । 16. साधु-साध्वी को झूठ बोलकर नहीं बहराऊँगा / बहराऊँगी। 58

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