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करना चाहिये, क्योंकि परभव के आयु का बंध प्राय: पर्व तिथि के रोज पड़ता है, जिस पर कि आगामी भव का आधार है। इसलिए जैसे बने वैसे पर्व के दिन सर्वविरति चारित्र तुल्य पौषध का पालन कर मनुष्य जन्म सुधारें, कृतार्थ करें।
बारहवाँ स्थूल
अतिथि संविभाग व्रत
अतिथि संविभाग शिक्षाव्रत की प्रतिज्ञा
द्रव्य से-मोक्ष मार्ग की आराधना में सर्वोत्कृष्ट निमित्त रूप आचार्य श्री जी, उपाध्याय श्री जी एवं साधुजी / साध्वीजी को संयम निर्वाह हेतु चौदह प्रकार की निर्दोष वस्तुएँ भक्ति पूर्वक अर्पित करूँगा /करूँगी। क्षेत्र से-मर्यादित क्षेत्र में मैं जहाँ भी उपस्थिति रहूँ। काल से - जीवन पर्यन्त । भाव से - राग, द्वेष, पक्षपात, निदान एवं यशप्रतिष्ठा की कामना से रहित निस्वार्थ उल्लसित भावों से प्रतिलाभित होकर धन्य बनूँ । अतिथि संविभाग व्रत के अतिचार
1. सचित्त निक्खेवणया - अचित्त वस्तु सचित्त पर रखना। 2. सचित्त पिहणया-अचित्त वस्तु सचित्त से ढँकना । 3. कालाइक्कमे - समय बीत जाने पर भावना भाई हो ।
4. परववएसे - स्वयं सूझता होते हुए दूसरों को बहराने को कहना । 5. मच्छरियाए-दान देकर अहंकार करना अथवा मत्सर ईर्ष्या भाव से दान देना
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अतिथि संविभाग व्रत के नियम
1. मैं साधु-साध्वी जी का योग मिलने पर चौदह प्रकार का आहार पानी भक्ति-भाव से, निष्काम - बुद्धि से, आत्म-कल्याण के लिए बहराऊँगा/बहराऊँगी।
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