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चौदह नियम
इहलोक व परलोक दोनों को सुखमय बनाने का एक मात्र साधन ही त्याग व मर्यादा है। जितना त्याग उतनी ही शांति। व्रत-नियम धारण करने से बहुत कम पाप खुला रहता है। जिससे आत्मा के कर्म बंध के अनेक कारण रूक जाते हैं। यदि कल्पना से यह कह दिया जाय कि प्रतिदिन चौदह नियम धारण करने से मेरू जितना पाप टलकर राई जितना पाप खुला रहता है तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है। 1. सचित्त-खाने पीने में काम में आने वाले सचित्त (जीव सहित) वस्तुओं की जाति, संख्या और हो सके तो वजन का भी परिमाण करें। सचित्त वस्तु का परिचय जैसे-कच्ची हरी तरकारी, फल-फूल अर्थात् संपूर्ण वनस्पति अग्नि पर पूरी सीझे नहीं तब तक सचित्त गिनना। बीज निकाले बिना सभी फलों के पणे सचित्त में गिनना। आम के व गन्ने के रस के सिवाय प्रायः पके फलों का रस निकाल कर रखने व छानने को 15-20 मिनिट नहीं हुआ हो तो भी सचित्त गिनना। यूँगारी हुई वनस्पतियाँ सचित्त है। चावल के सिवाय प्रायः सभी अनाज सचित्त। काजू को छोड़कर सभी मेवे प्रायः सचित्त । काला नमक को छोड़कर सभी नमक सचित्त । पानी को धोवन पानी बनाये दो घड़ी (एक घड़ी=24 मिनट) नहीं हुई है तो सचित्त, जीरा, राई, मेथी, अजवाइन, सौंफ, इलायची के दाने, हरा पान, अखंड बादाम आदि सचित्त किसी भी चीज में नमक जीरा आदि ऊपर से डाले हों तो 24 मिनट तक सचित्त गिनना। सूखी चीज पर नमक, जीरा डाले तो सचित्त ही रहते हैं। (1) पृथ्वीकाय-मिट्टी, मुरड़, खड़ी, गेरू, हिंगलु आदि का अपने
हाथ से आरम्भ करने की मर्यादा। ऊपर से नमक लेने का
त्याग। a (2) अप्काय-पानी प्रतिदिन पीने के लिए ( ), स्नान व गृह कार्य