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छह काया का आरंभ और नौ प्रकार का बाह्य तथा चौदह प्रकार का आभ्यन्तर परिग्रह का सर्वथा प्रकार से त्याग करूँगा, वह दिन मेरा धन्य होगा ।"
2. दूसरे मनोरथ में श्रावक जी यह चिन्तन करे कि - "कब वह शुभ समय प्राप्त होगा, जब मैं गृहस्थावास को छोड़कर मुण्डित होकर प्रव्रज्या (संयम) अंगीकार करूँगा, अर्थात पांच महाव्रत, पाँच समिति तीन गुप्ति, दस यति धर्म और सत्रह प्रकार के संयम का पालन करूँगा, वह दिन मेरा धन्य होगा ।"
3. तीसरे मनोरथ में श्रावक जी यह चिन्तन करे कि - "कब वह शुभ समय प्राप्त होगा, जब मैं अन्त समय में संलेखना संथारा करके आहार पानी का त्याग कर पण्डित मरण अंगीकार कर जीवनमरण की इच्छा न करता हुआ अंतिम समय सम्पूर्ण पापों का त्याग कर, आजीवन अनशन स्वीकार कर आत्म-भाव में लीन बनूँगा । वह दिन मेरा धन्य होगा ।"
बीमा
1. घर, दुकान, संसार प्रपंच का त्याग (
(व्यापार बंद, संसार हेतु मर गया, धर्म हेतु जिंदा हूँ) 2. 4,3,2, या 1 खंध का पालन (
) उम्र के बाद। (1. हरी - लिलोती का त्याग 2. कच्चे पानी का त्याग 3. रात्रि में चौविहार त्याग 4. कुशील (मैथुन) सेवन का त्याग।) 3. दीक्षा लेंगे ( ) उम्र पश्चात । 60 साल की वय से पहले संयम उदय में न आवे वहाँ तक ( ) त्याग।
4. संयम की प्रेरणा करेंगे (स्वयं भी लेने की भावना रखेंगे) घर परिवार में दीक्षा लेने वाले को अंतराय नहीं देंगे। भाव आगे बढ़ायेंगे। परीक्षा ले सकते हैं। अपनी प्रेरणा से किसी को दीक्षा दिलवाने का प्रयत्न करेंगे अन्यथा खुद लेंगे ।
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) तत्पश्चात् निवृत्ति