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अनर्थदण्ड विरमण व्रत की शिक्षाएँ
1. अवकाश के समय गपशप नहीं करके सत्साहित्य का वाचन करना चाहिए। समाज धर्म और देश की उन्नति के उत्तम काम करने चाहिए। धर्म क्रिया करते समय दूसरे व्यक्ति के द्वारा किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न हो जाय तो आर्त्तध्यान नहीं करना चाहिए। 2. किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए किन्तु अपनी आत्मा को उन्नत करने वाले कार्य करते रहना चाहिए।
3. दूसरों के द्वारा आचरित पाप कार्यों में सहयोगी नहीं बनना चाहिए। 4. खाली दिमाग शैतान का घर होता है, अतः एक क्षण भी खाली नहीं बैठकर कुछ आत्मा को उन्नत बनाने वाले काम करते रहना चाहिए। 5. जासूसी उपन्यास, भड़कीले मेगजिन्स, श्रृंगार रस की कहानियाँ नहीं पढ़नी चाहिए।
6. होली जलाना, होली खेलना आदि अनेक आरंभ समारंभ की क्रीड़ाएँ नहीं करनी चाहिए।
नवम स्थूल
सामायिक व्रत
सामायिक शिक्षाव्रत की प्रतिज्ञा
द्रव्य से-जीवन में पूर्ण समभाव की प्राप्ति का लक्ष्य रखकर प्रतिदिन
कम से कम एक अथवा महिने में (
क्षेत्र से- अपने मर्यादित क्षेत्र में रहते हुए। काल से - (
) पर्यन्त कम से कम दो घड़ी (48 मिनट) । भाव से - राग, द्वेष, विषय व कषाय
से
युक्त सावद्य प्रवृत्ति का त्याग दो करण तीन योग से।
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) सामायिक करूँगा/करूँगी ।