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के अनुसार। काल से-जीवन पर्यन्त (प्रतिवर्ष या प्रतिमाह तक) भाव: से-राग-द्वेषादि कषाय भावों को मंदकर एक करण तीन योग से निरवद्य प्रवृत्ति करूँगा/करूँगी। देशावकाशिक व्रत के अतिचार 1. आणवणप्पओगे-मर्यादित क्षेत्र से बाहर की वस्तु मँगाना। 2. पेसवणप्पओगे-किसी अन्य के साथ वस्तु को बाहर भिजवाना। 3. सद्दाणुवाए-शब्द करके सचेत करना। 4. रुवाणुवाए-रूप दिखाकर अपने भाव प्रकट करना। 5. बहिया पुग्गल पक्खेवे-कंकर आदि फैंककर दूसरों को बुलाना।
व्रत का विषय-इस व्रत में दो प्रकार की मर्यादा की जाती है। (1) स्वेच्छा से अहोरात्रि तक छहों दिशाओं की मर्यादा करना। (2) दिशा मर्यादा के साथ द्रव्यादि (उपभोग-परिभोग) की मर्यादा करना। इस व्रत में छठे और सातवें व्रत का संकोच हो जाता है। देशावकाशिक व्रत के नियम | 1. दसवाँ व्रत वर्ष में ( ) करूँगा/करूँगी। 2. पर्व दिनों में यात्रा नहीं करूँगा/करूँगी। 3. चौमासे में विदेश गमन नहीं करूँगा/करूँगी। 4. नित्य चौदह नियम चितारूँगा/चितारूँगी। 5. दसवाँ व्रत लेने के बाद मर्यादित क्षेत्र के बाहर की वस्तु नहीं
मँगवाऊँगा /मँगवाऊँगी। 6. भोजन करते समय द्रव्यों की निन्दा प्रशंसा नहीं करूँगा/करूँगी। 7. जूठा नहीं छोडूंगा/छोडूंगी। 8. मैं आज दिनांक .................को दिशाओं में निम्न सीमा से
अधिक नहीं जाऊँगा/जाऊँगी। ऊँची ( ) नीची ( ) पूर्व ( ) पश्चिम ( ) उत्तर ( ) दक्षिण ( )।
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