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कषाय भावों को मंद करने के लिए मैं आत्म हितार्थ सम्यक् प्रवृत्ति करूँगा/करूँगी। दो करण तीन योग से।
अनर्थदण्ड के चार प्रकार
1. अवज्झाणाचरिए - (क) क्रोध, भय, दुःख इत्यादि कारणों से मन में ही किसी को दण्डित करने का विचार करना ।
(ख) आर्त्तध्यान- इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, रोगादि के समय रोना, पीटना तथा काम भोगों को टिकाए रखने का चिंतन करना। (ग) रौद्रध्यान-किसी को मारने या हानि पहुँचाने का विचार करना, विष खाकर, जल में डूबकर, अग्नि में जलकर पर्वतादिक से गिर कर आत्महत्या करना, झूठ बोलने में आनन्द मानना, चोरी करने में आनन्द मानना, परिग्रह रखने में आनन्द मानना और परिग्रह बढ़ाने का विचार करना रौद्रध्यान है।
2. पमाया चरिए-प्रमाद के कारण रात्रि में बासी बरतन रखना, घी, तेल, दूध-दही आदि के बरतन खुला रखना तथा धर्म करणी स्वयं नहीं करना व दूसरों को अंतराय देना ।
3. हिंसप्पयाणे-हिंसाकारी शस्त्र, तलवार, भाला, बंदूक, कुदाल, फावड़ा, छुरी, मिक्सर आदि निरर्थक साधनों को बढ़ाना तथा दूसरों को देना ।
4. पावकम्मोवएसे - पापकारी उपदेश और खोटी सलाह देना साधुश्रावक व्रतों से भ्रष्ट हो जाय ऐसा उपदेश देना तथा मकान बनाना, कारखाना खोलना आदि हिंसाकारी सलाह देना ।
अनर्थदण्ड के अतिचार (दोष)
1. कंदप्पे-काम विकार को उत्पन्न करने वाली कथा करना ।
2. कुक्कुइए-भाँडों की तरह आँख, नाक, मुख आदि अपने अंगों को विकृत करके दूसरों को हँसाने की कुचेष्टा करना।
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