Book Title: Shravak Ke Barah Vrat
Author(s): Mangla Choradiya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 31
________________ 11. कपड़े और किराणा आदि का व्यापार करना पड़े तो नग दुकान ) से ज्यादा नहीं रखूँगा / रखूँगी। ( 12. मनिहारी सामान, काँच आदि का व्यापार करने पड़े तो ( से ज्यादा नहीं रखूँगा/रखूँगी । परिग्रह विरमण व्रत के आगार 1. उपहार की वस्तु या ऋण दी हुई वस्तु के बदले में कोई दूसरी वस्तु आ जाय तो आगार हैं। ) 2. दया दृष्टि से किसी द्विपद, चतुष्पद को सहारा देना पड़े तो आगार हैं । 3. किसी सगे संबंधी की जायदाद आदि की व्यवस्था करनी पड़े तो आगार हैं। 4. किसी संस्था के ट्रस्टी या पंचायत के द्रव्यादि की रक्षा करनी पड़े तो आगार हैं। 5. किसी कंपनी का शेयर खरीदना पड़े, पार्टनरशिप रखनी पड़े, किसी योग्य व्यापार की दलाली करनी पड़े, व्यापारिक सलाह देनी पड़े तो आगार है। 6. चतुष्पद आदि परिवार बढ़े तो उसको रखने का आगार हैं। अपरिग्रह व्रत की शिक्षाएँ 1. इच्छा बढ़ाने से असंतोष और अशांति भी बढ़ती है, अतः शांति सुख के लिए इच्छा को घटाना चाहिए। 2. अपने कुटुम्ब के निर्वाह के साथ परमार्थ कार्य में द्रव्य लगाना चाहिए। 3. परमार्थ कार्य में द्रव्य खर्च करने की इच्छा से अनीति अन्याय पूर्वक द्रव्य पैदा नहीं करना चाहिए। 26

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